आदिवासी होने के कारण राष्ट्रपति से नहीं कराया संसद का उद्घाटन: प्रकाश अंबेडकर
कांग्रेस समेत कई प्रमुख विपक्षी दलों, सपा, डीएमके, शिवसेन, टीएमसी, आरजेडी, जेडीयू ने राष्ट्रपति द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन न कराए जाने को लेकर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर दिया था। वहीं वंचित बहुजन अघाड़ी के प्रमुख और भारत के संविधान निर्माता, बाबा साहेब अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने नए संसद भवन उद्घाटन समारोह के लिए भारत गणराज्य के राष्ट्रपति को न बुलाने को लेकर विवादित बयान जारी कर एक नई बहस छेड़ दी है।
प्रकाश अंबेडकर ने अपने वीडियो संदेश में बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र में आरएसएस और बीजेपी की सरकार है, और दोनों ही संगठन वैदिक धर्म के प्रचारक हैं। वैदिक धर्म में न तो महिलाओं को अधिकार दिया जाता है, और न ही आदिवासियों को महत्व दिया जाता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक महिला और आदिवासी हैं। आरएसएस बीजेपी की विचारधारा में दोनों को ही इंसान नहीं माना जाता है। आज देखा जा रहा है कि भारतीय गणतंत्र के नए संसद भवन का, राष्ट्रपति की जगह भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री से उद्घाटन कराया। हालांकि उनका यह बयान कि भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री से उद्घाटन कराया, विवादित बयान कहा जा सकता है, क्योंकि प्रधानमंत्री देश और जनता का होता है, किसी विशेष दल का नहीं।
उन्होंने कहा कि, बीजेपी की इस हरकत से देशभर के आदिवासियों को संदेश दिया जा रहा है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके साथ ही प्रकाश अंबेडकर ने अपने बयान में कहा कि 2024 के आम चुनावों में भाजपा को हराने के बाद नए संसद भवन का उद्घाटन भारत गणराज्य की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किया जाएगा।
गौरतलब है कि नए संसद भवन का उद्घाटन भारत गणराज्य के राष्ट्रपति के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है, जिसके कारण विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध करते हुए उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया था। उनका मानना है कि संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति केवल तीनों सेनाओं का प्रमुख ही नहीं होता होता है, बल्कि संसद की तीन शाखाओं, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति में से भी एक होता है।
इसीलिए विपक्षी दलों की मांग थी कि इस भवन का उद्घाटन भारत गणराज्य की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किया जाना चाहिए। इस मांग के पूरा न होने पर विपक्षी दलों ने संयुक्त रूप से उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर दिया था। इस आयोजन के लिए भारत की राष्ट्रपति को आमंत्रित भी नहीं किया गया था। विपक्षी दलों का कहना है कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में नए संसद भवन का उद्घाटन करना न सिर्फ राष्ट्रपति के कार्यालय का अपमान है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी हमला है।


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