पूंजिपतियों को फ़ायदा पहुंचाने वाली नीतियों ने आर्थिक लाभ को कुछ चुनी हुई कंपनियों तक केंद्रित कर दिया: कांग्रेस

  • पूंजिपतियों को फ़ायदा पहुंचाने वाली नीतियों ने आर्थिक लाभ को कुछ चुनी हुई कंपनियों तक केंद्रित कर दिया: कांग्रेस

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि मोदी सरकार देश को कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे,अडानी घोटाला, जाति जनगणना और विशेष रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, बढ़ती असमानता और आर्थिक संकट आदि से भटकाने की कोशिश कर रही थी। मोदी सरकार आंकड़ों को चाहे कितना भी छिपा ले, हक़ीक़त यह है कि बड़ी संख्या में लोग परेशान हैं।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की पूंजिपतियों को फ़ायदा पहुंचाने वाली नीतियों ने आर्थिक लाभ को कुछ चुने हुई कंपनियों तक केंद्रित कर दिया है। इस वजह से MSME के लिए प्रतिस्पर्धा करना लगभग असंभव हो गया हैमार्सेलस की एक रिपोर्ट में सामने आया कि 2022 में सभी मुनाफे का 80% सिर्फ 20 कंपनियों के पास गया। इसके विपरीत, छोटे व्यवसाय की बाज़ार हिस्सेदारी भारत के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर थी ।

2014 से पहले छोटे व्यवसाय की बिक्री कुल बिक्री का लगभग 7% थी, लेकिन 2023 की पहली तिमाही में यह गिरकर 4% से भी कम हो गई। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशन द्वारा 100,000 छोटे व्यवसाय मालिकों के 2023 के सर्वेक्षण के अनुसार 75% छोटे व्यवसायों के पैसे बर्बाद हो रहे हैं।

बढ़ती बेरोज़गारी, घरेलू आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतें, एमएसएमई की घटती बिक्री, धीमी घरेलू ऋण वृद्धि, घरेलू वित्तीय देनदारियों(Liabilities) में वृद्धि एवं बचत में कमी और एफडीआई में गिरावट से लेकर, मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का ठीक से प्रबंधन नहीं किया है। सामान्य परिवार और छोटे व्यवसाय भारी दबाव में हैं। सरकार इस स्थिति को ठीक करने में अक्षम है। वह इसके बजाय डेटा को विकृत करने में और दबाने में व्यस्त है।

एक दशक में पहली बार भारत में एफडीआई प्रवाह में गिरावट आई है। RBI बुलेटिन से पता चला कि वित्त वर्ष 2023 में FDI में 16% की कमी आई है। इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में, 2004 में 0.8% से दोगुना होकर 2014 में 1.7% होने के बाद, एफडीआई स्थिर रहा था – 2022 में यह प्रवाह सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.5% था।

विदेशी निवेशक भारत में अपना पैसा लगाने के लिए उत्साहित नहीं हैं। इसका मुख्य कारण मोदी सरकार का मित्र पूंजीवाद, विफल आर्थिक नीतियां और सांप्रदायिक तनाव भड़काना है। सरकार के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए कि घरेलू वित्तीय देनदारियां(Liabilities) तेज़ी से बढ़ रही हैं। वित्त मंत्रालय चाहता है कि हम यह विश्वास करें कि ये सभी लोग घर और गाड़ी ख़रीद रहे हैं। लेकिन आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले वर्ष के दौरान गोल्ड लोन में 23% और पर्सनल लोन में 29% की भारी वृद्धि हुई है।

ये आंकड़े संकट के स्पष्ट संकेत हैं। इससे पता चलता है कि लोग बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ में डूबने को मजबूर हैं। इसके अलावा आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि घरेलू बचत वृद्धि वित्त वर्ष 2012 में सकल घरेलू उत्पाद के 7.2% से घटकर वित्त वर्ष 2023 में केवल 5.1% रह गई है। यह बचत वृद्धि दर 47 साल के सबसे निचले स्तर पर है। यह मोदी सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था में समग्र मंदी को दर्शाता है।

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