लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर पुलिस-छात्रों के बीच झड़प

लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर पुलिस-छात्रों के बीच झड़प

लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे और संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर आंदोलित छात्रों और पुलिस के बीच मंगलवार को हिंसक झड़पें हुईं। प्रदर्शनकारियों ने सामाजिक व जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के समर्थन में सड़क पर उतरकर केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की। इस दौरान गुस्साए छात्रों ने एक सीआरपीएफ वाहन में आग लगा दी, जिसके बाद स्थिति और बिगड़ गई। पुलिस ने हालात को काबू करने की कोशिश की, लेकिन तनाव और बढ़ गया।

गौरतलब है कि सोनम वांगचुक और उनकी अगुवाई वाली एपेक्स बॉडी लंबे समय से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है। वांगचुक ने इसके लिए नई दिल्ली तक मार्च किया था और कई दिनों तक भूख हड़ताल भी की। इसी आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए लेह में युवा, विशेष रूप से Gen-Z, सड़कों पर उतर आए।

छात्र संगठनों का कहना है कि यह आंदोलन लद्दाख की सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान की रक्षा के लिए है। उनका तर्क है कि राज्य का दर्जा मिलने से क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों और भूमि पर स्थानीय जनता का नियंत्रण कायम रहेगा। स्थानीय सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया है, जिससे यह केवल छात्र आंदोलन न रहकर सामूहिक जनांदोलन का रूप ले रहा है।

पृष्ठभूमि में देखें तो 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में बांट दिया गया था। हालांकि, लेह और कारगिल के लोगों का मानना है कि केंद्र शासित प्रदेश का ढांचा उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं और स्वशासन की मांग को पूरा नहीं करता। इसी असंतोष ने अब राज्य के दर्जे की मांग को तेज़ कर दिया है।

इस बीच, प्रशासन ने लेह और आसपास के इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल और सीआरपीएफ की तैनाती कर दी है। सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटा जा सके। हालांकि छात्र संगठनों ने ऐलान किया है कि उनका आंदोलन अभी शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन चेतावनी दी है कि यदि केंद्र सरकार ने उनकी मांगों पर शीघ्र ध्यान नहीं दिया तो विरोध और उग्र रूप ले सकता है।

लद्दाख का यह आंदोलन अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। स्थानीय लोगों की यह मांग केवल संवैधानिक बदलाव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी पहचान, संसाधनों और भविष्य पर अधिकार की लड़ाई भी बन चुकी है। केंद्र सरकार पर अब दबाव बढ़ गया है कि वह इस आंदोलन के प्रति ठोस रुख अपनाए और क्षेत्र की राजनीतिक आकांक्षाओं का समाधान निकाले।

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