मध्य प्रदेश और राजस्थान में केजरीवाल, ओवैसी को जनता ने नकारा
नई दिल्ली: दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद केजरीवाल हिंदी बेल्ट के तीनों राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में AAP का जनाधार बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे। इसी के तहत मध्य प्रदेश में आप ने 70 से ज्यादा सीटों पर, राजस्थान में 88 और छत्तीसगढ़ में 57 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ , राजस्थान और तेलंगाना में मतगणना ख़त्म होने वाली है। एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जहां बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया, तो वहीं तेलंगाना में कांग्रेस पहली बार सरकार बनाने जा रही है। दिल्ली-पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने भी एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पूरे दमखम से चुनाव लड़ा था। खुद अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने कई रैलियां और रोड शो किए थे। लेकिन चुनाव नतीजों में पार्टी छाप छोड़ने में असफल रही।
केजरीवाल ने दिल्ली-पंजाब की तरह इन राज्यों में भी मुफ्त बिजली-पानी और शिक्षा का वादा किया था। कई रैलियों और रोड शो के बावजूद AAP को कोई फायदा मिलता नहीं दिखा। आम आदमी पार्टी ने तेलंगाना में प्रत्याशी नहीं उतारे थे। चुनाव आयोग के मुताबिक, आम आदमी पार्टी को छत्तीसगढ़ में 0.97% वोट मिलता दिख रहा है। जबकि मध्यप्रदेश में 0.42% और राजस्थान में 0.37% वोट मिल रहा है।
केजरीवाल ही की तरह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने भी राजस्थान में अपने तीन प्रत्याशी चुनाव में उतारे थे। लेकिन उन्हें यहां कोई फायदा होते नहीं दिखा। और उनकी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी अपनी ज़मानत बचता हुआ दिखाई नहीं दिया। वहीं बात की जाए औवेसी की पार्टी को मिले वोट प्रतिशत की तो राजस्थान में AIMIM को मात्र 0.01 प्रतिशत वोट मिले हैं।
राजस्थान की जनता ने ओवैसी को नकारा
राजस्थान में पहली बार चुनाव लड़ने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने जयपुर की हवा महल विधानसभा सीट से जमील अहमद को चुनाव में उतारा था, जिसे 580 वोट मिला है। वहीं कांमा विधानसभा सीट से इमरान नवाब को पार्टी ने टिकट दिया था। जिन्हें मात्र 125 वोटों से संतोष करना पड़ा है। इसके अलावा ओवैसी की पार्टी ने फतेहपुर विधानसभा सीट से जावेद अली खान पर भरोसा जताया था, जिन्हें भी मात्र 195 वोट मिले हैं। देखा जाए तो राजस्थान की जनता ने ओवैसी की पार्टी को पूरी तरह से नकार दिया है।
ऐसे में यह प्रश्न उठने लगा है कि इन दोनों नेताओं का मक़सद क्या था ? इन दोनों पार्टियों का मक़सद चुनाव लड़ना था या चुनाव के नाम पर तमाशा करना था ? केजरीवाल केवल 70 या 88 सीटों पर चुनाव क्यों लड़े ? जबकि ओवैसी हैदराबाद गढ़ होते हुए भी केवल 9 सीटों पर चुनाव क्यों लड़े। इन दोनों नेताओं ने अपनी पार्टी को वोट कटवा पार्टी के तौर पर क्यों पेश किया ?
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।