शरद पवार की सियासत समझने में असमर्थ नज़र आ रहा विपक्ष
भारतीय राजनीति में आजकल दो मुद्दे सबसे ज़्यादा चर्चा में थे पहला अडानी और हिंडनबर्ग दूसरा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री। अडानी मुद्दे पर संसद का पूरा सत्र ख़त्म गया, इसके कारण कई बार लोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही भी स्थगित हुई। अडानी का मुद्दा संसद और संसद के बाहर कांग्रेस ने लगातार उठाया, विशेष रूप से राहुल गाँधी इसमें सबसे ज़्यादा सक्रिय रहे। सूरत कोर्ट द्वारा सो साल की सज़ा पाने के बाद अपनी लोक सभा सदस्यता गंवाने के बाद भी राहुल गाँधी ने इस मुद्दे को नहीं छोड़ा।
राहुल गाँधी उसी आक्रामकता के साथ लगातार इस मुद्दे को अभी तक उठा रहे हैं,और सत्ता पक्ष इस मुद्दे पर अभी तक बैकफुट पर नज़र आ रहा था लेकिन जैसे ही प्रधान मंत्री की डिग्री का मामला आया अडानी मुद्दे पर मानो विपक्ष को संजीवनी मिल गयी हो, प्रधानमंत्री की डिग्री का मुद्दा अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी पूरे जोश ख़रोश के साथ उठा रही है। लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) चीफ शरद पवार ने विपक्ष के अडानी मुद्दे की हवा निकालने के बाद अब पीएम मोदी के डिग्री वाले मुद्दे को भी ध्वस्त करने कर दिया है।
हाल ही में पवार ने एनडीटीवी को दिए गए इंटरव्यू में अडानी मुद्दे पर जेपीसी जांच की मांग को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के संदर्भ में अडानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की जांच ज्यादा विश्वसनीय होगी। उन्होंने यह भी कहा कि अडानी जैसे बेकार के मुद्दे उठाकर संसद का समय बर्बाद किया गया। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे विपक्ष और देश के सामने हैं। उन्होंने कहा था कि अडानी जैसे उद्योगपतियों का देश के विकास में योगदान है, लोग इस बात को भूल जाते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने टाटा-बिड़ला का भी नाम लिया था।
भाजपा पीएम मोदी की डिग्री के सवाल पर हमेशा बचाव की मुद्रा में रही है। जब सबसे पहले यह मुद्दा उठा तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और स्व. अरुण जेटली ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पीएम मोदी की डिग्री की फोटोस्टेट पत्रकारों को बांटी थी।इसके बाद भाजपा की ओर से इस पर लगातार सफाई दी जाती रही और विपक्ष का कोई न कोई नेता इस सवाल को उठाता रहा। इसी तरह केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री पर भी सवाल पूछे गए। लेकिन अब स्मृति की डिग्री का सवाल नेपथ्य में चला गया है और पीएम मोदी की डिग्री मुख्य चर्चा के केंद्र में है। पवार की टिप्पणी के बाद विपक्ष की रणनीति धराशायी होती नजर आ रही है।
एनडीटीवी के मुताबिक पवार ने उन लोगों की आलोचना की है जो नेताओं की शिक्षा के मुद्दे को उठा रहे हैं, जबकि देश इससे भी अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों का सामना कर रहा है, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। एनडीटीवी के मुताबिक पवार ने रविवार को पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि बेरोजगारी, कानून व्यवस्था और महंगाई जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। नेता उन मुद्दों से दूर रह सकते हैं या इंतजार कर सकते हैं जो अच्छे हैं। यहां तक कि गैर मुद्दों को भी उठाने के लिए इंतजार किया जा सकता है।
पवार ने मराठी भाषा में कहा- बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था, महंगाई पर केंद्र सरकार की आलोचना करें…अन्य महत्वपूर्ण मामले देखें। धर्म और जाति के नाम पर लोगों के बीच मतभेद पैदा किए जा रहे हैं। बेमौसम बारिश ने महाराष्ट्र में फसलों को बर्बाद कर दिया है। हमें इन पर चर्चा की जरूरत है। उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल सहित केंद्र में कई विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर उन पर निशाना साधा है। आम आदमी पार्टी ने तो इस पर पोस्टर पर अभियान छेड़ा हुआ है।
शरद पवार की दूसरी टिप्पणी के बाद देश की राजनीतिक तस्वीर दिलचस्प होने जा रही है। क्योंकि कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो अडानी के मुद्दे से पीछे हटने वाली नहीं है। आम आदमी पार्टी ने डिग्री दिखाओ अभियान छेड़ दिया है। दूसरी तरफ शिवसेना यूबीटी के वरिष्ठ नेता संजय राउत कह रहे हैं कि पवार के बयानों से विपक्षी एकता में कोई दरार नहीं पैदा होगी। जबकि शरद पवार अपने बयानों की वजह से जिस तरफ बढ़ रहे हैं, वो उन्हें बाकी विपक्षी दलों से दूर कर देगा। एनसीपी की उपस्थिति महाराष्ट्र तक ही सीमित है। उसके कई नेता करप्शन के आरोप में जेल या बेल पर हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।