यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विपक्षी पार्टियों का बहाना
इस समय देश में सबसे ज़्यादा चर्चा में अगर कोई बहस है तो वह है यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) जिसे केंद्र सरकार मानसून सत्र में लोकसभा में पेश करना चाहती है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी इसे चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है। इसे लेकर बीजेपी शासित राज्यों में माहौल गरमाया जाने लगा है। विशेष रूप से उत्तराखंड जहां इसके लिए मसौदा भी तैयार किया जा चुका है।
विपक्षी पार्टियां इसे लेकर कश्मकश में हैं। वह खुलकर इसका समर्थन भी नहीं कर पा रही हैं, और खुल कर विरोध भी नहीं। हालांकि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए मुद्दे बहुत हैं। वह महंगाई, बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था और मणिपुर हिंसा जैसे मुद्दों को लेकर सरकार को घेर सकता है, लेकिन अकसर देखा गया है कि विपक्ष इसमें कमज़ोर पड़ जाता है, जबकि सत्ताधारी दल विपक्ष को घेरने में किसी प्रकार की सुस्ती नहीं करता।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश चुनाव हारने के बाद काफ़ी कमज़ोर हुई है, जबकि आगामी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान विधान सभा चुनाव के सर्वे में भी वह कमज़ोर नज़र आ रही है। इन तीनों राज्यों और लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने यूनिफार्म सिविल कोड को मुख्य मुद्दा बनाया है जिसमे वह फ़िलहाल सफल होती नज़र आ रही है।
यूनिफार्म सिविल कोड से मुसलामनों का उतना नुकसान नहीं है जितना आदिवासियों, क्रिश्चन और सिख समुदाय का नुक़सान है। लेकिन आजकल टीवी चैनलों पर कुछ तथाकथित मुस्लिम विद्वानों को बुलाकर डिबेट शो कराकर ऐसा दिखाया जा रहा है कि इससे सिर्फ़ मुसलमानों का नुक़सान है और केवल वही इसके विरोधी हैं।
विपक्षी पार्टियों की मुश्किल यह है कि वह मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति तो करती हैं लेकिन किसी भी बिल पर खुल कर समर्थन भी नहीं करती। यही उनके कमज़ोर होने का सबसे बड़ा कारण है। विशेषरूप बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती जो मुस्लिम दलित वोट के कारण तीन बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
यही हाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का है, जो सेक्यूलरिज़्म और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर दूसरी बार दिल्ली की कुर्सी पे बैठे हैं, जबकि उनके नेता भगवंत मान, पंजाब के मुख्यमंत्री बने हैं। अगर यूपी में मायावती दलित मुस्लिम वोट बैंक के कारण तीन बार मुख्यमंत्री बनीं तो दिल्ली और पंजाब में अरविंद केजरीवाल, दलित, मुस्लिम, सिख वोट के कारण सत्ता की कुर्सी पर बैठे। लेकिन बसपा और आप दोनों ने यूसीसी का समर्थन किया है।
बीएसपी चीफ ने कहा, “हमारी पार्टी यूसीसी के विरोध में नहीं है। लेकिन उसे जबरन थोपने का प्रावधान बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के संविधान में निहीत नहीं है। इसके लिए जागरुकता और आम सहमती को श्रेष्ठ माना गया है। जिस पर अमल नहीं करके संकीर्ण स्वार्थ की राजनीति करना देश हित में सही नहीं है, जो कि इस समय की जा रही है। संविधान की धारा 44 में UCC बनाने का प्रयास तो वर्णित हैं मगर इसे थोपने का नहीं है।” वहीँ आम आदमी पार्टी ने सैद्धांतिक मूल्यों के बहाने के साथ समर्थन किया है।
इन दोनों पार्टियों को इस बात का डर है कि अगर वह विरोध करेंगे तो हिंदू वोट बैंक हाथ से निकल जाएगा। अरविन्द केजरीवाल केंद्र के अध्यादेश और अपने नेताओं की ईडी, सीबीआई द्वारा गिरफ़्तारी पर सबका समर्थन तो चाहते हैं लेकिन खुद किसी का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं हैं, हालांकि दोनों पार्टियों को तेजस्वी यादव से सीखना चाहिए जिसने सीएए का खुल कर विरोह किया था जिसके कारण आरजेडी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनी, उसका जनाधार बढ़ा, और आज तेजस्वी यादव सत्ता की कुर्सी पर बैठे हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।