विपक्षी गठबंधन बीजेपी विरोधी पार्टियों के जीवन-मरण का सवाल
भारतीय केंद्रीय राजनीति में जिस चीज की सबसे ज्यादा कमी है, उसके अब गायब होने की संभावना बढ़ती जा रही है। हर कोई जानता है कि एक दशक से राजनीतिक क्षेत्र भाजपा के लिए बिना किसी सार्थक विपक्ष के खाली है। जाहिर है, बाकी सभी कारणों के साथ-साथ बीजेपी और उसके मुख्य नायक नरेंद्र मोदी इसका भी फायदा उठाते रहते हैं। यह तो सभी को मालूम है कि इसका मुख्य कारण विपक्ष का आपसी बिखराव है।
चुनावी के आंकड़ों से साफ है कि आज भी भारत में गैर-बीजेपी पार्टियों का कुल वोट बीजेपी और उसके सहयोगियों से ज्यादा है। फिर भी पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा विजयी रही है। यह बात बीजेपी विरोधी राजनीतिक दल भी अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन अभी भी इस कमजोरी को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इस गलती का नतीजा सिर्फ कांग्रेस नहीं, पूरा विपक्ष भुगत रहा हैं।
लेकिन पिछले करीब एक महीने में विपक्ष ने समझदारी दिखाई है। विपक्षी गठबंधन का जो शोर अब तक हवा में था, वह अब जमीन पर हकीकत बनता जा रहा है। पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बीजेपी विरोधी पार्टियों को एकजुट करने की पहल के बाद अब कांग्रेस ने दूसरा कदम उठाया है कांग्रेस के निमंत्रण पर देश की 26 प्रमुख बीजेपी विरोधी पार्टियां कल से बेंगलुरु में बैठक कर रही थीं।
आज उनकी बैठक ख़त्म हो गई। पटना की तरह आज भी सभी विपक्षी दलों ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस बैठक को सभी दलों के नेताओं ने सफल बताया है। इस बैठक में महगठबंधन का नाम इंडिया (INDIA) रखा गया है, जिस पर सभी दल सहमत दिखे। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने गठबंधन को सफ़ल बनाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया कि हमें सत्ता या प्रधानमंत्री पद की कोई लालसा नहीं, हम यहां संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए जमा हुए हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य 2024 का चुनाव बीजेपी के खिलाफ मिलकर लड़ना है। इस बैठक की खास बात यह है कि पटना में करीब 18 पार्टियां थीं, जबकि बेंगलुरु में क़रीब 26 पार्टियां थीं। जाहिर तौर पर बीजेपी विरोधी पार्टियों को भी यह एहसास होने लगा है कि साल 2024 उनके लिए करो या मरो का मौका है। मोदी सरकार ने बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय दलों में फूट डालकर साफ कर दिया है कि वह मुश्किल दौर में है।
विडंबना यह है कि ईडी की लटकती तलवार से यह बात अब सभी को समझ में आ गई है कि अगर बच्चे पैदा भी हो गए तो उनकी बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। इसलिए अब बीजेपी विरोधी दलों की मजबूरी है कि वह साथ मिलकर लड़े वरना अंत तय है। इसलिए विपक्षी दलों के स्वागत का सिलसिला कल से शुरू हो गया था। यह भी स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में मुख्य भूमिका अब कांग्रेस की ही नजर आयेगी, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस की भागीदारी के बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन निरर्थक है।
इस हफ्ते बेंगलुरु में होने वाली बैठक में कांग्रेस का दबदबा रहेगा। बैठक एक दिन पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के रात्रि भोज से शुरू हुई। यह सभी के लिए स्पष्ट है कि विपक्षी गठबंधन का सबसे सार्थक अनुभव सोनिया गांधी के पास है। 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले वह सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने विपक्ष को एकजुट किया और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बीजेपी नेताओं को हराया। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि किस विपक्षी नेता से निपटा जा सकता है। सोनिया गांधी के अनुभव से कांग्रेस और सभी बीजेपी विरोधी पार्टियों को फायदा हो सकता है।
सभी भाजपा विरोधी दलों की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि एकजुटता के मौके पर उन्हें इस बात का अंदाजा होना चाहिए कि कौन सी पार्टी किस हद तक अपने पैर फैला सकती है। दो-चार सीटों की आपसी लड़ाई न सिर्फ उन पर बल्कि पूरे देश पर भारी पड़ने वाली है। इसलिए प्रत्येक दल को अपने मूल हित की रक्षा के साथ-साथ दूसरों के हित का भी ध्यान रखना होगा।
इसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर है। इस संबंध में राहुल गांधी ने पटना बैठक में साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी का रुख नरम रहेगा। अब क्षेत्रीय दलों को इस संबंध में अपनी भूमिका निभानी होगी। साफ है कि साल 2024 देश और विपक्ष दोनों के लिए जीवन और मृत्यु का दौर है। जरा सी चूक उनके लिए घातक साबित हो सकती है।
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