नीतीश कुमार को 2024 से पहले लोकसभा चुनाव की आशंका
वैसे तो अभी लोकसभा चुनाव एक साल बाद है। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव के लिए लामबंदी अभी से शुरू हो चुकी है। हर पार्टी 2024 लोक सभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में जुट गयी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपने गठबंधन का दायरा बढ़ाने के लिए छोटे बड़े सभी दलों से बातचीत कर रहे हैं।
विपक्षी गठबंधन की अगुवाई नीतीश कुमार कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 23 जून को पटना में विपक्षी दलों की महागठबंधन बनाने के लिए मीटिंग राखी गयी है। जिसमें राहुल गांधी, खड़गे, ममता बनर्जी, महबूबा मुफ़्ती, फ़ारूक़ अब्दुल्ला सहित प्रमुख विपक्षी नेताओं के पहुँचने की उम्मीद है।
इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात की भी आशंका है कि लोक सभा चुनाव 2024 से पहले कराया जा सकता है। अपनी शंका को कई बार वह इशारों में बयान भी कर चुके हैं। लेकिन यहाँ प्रश्न यह उठता है कि नीतीश कुमार को क्यों लगता है कि 2024 लोकसभा चुनाव समय से पहले हो सकता है, जबकि केंद्र सरकार की तरफ़ से अभी तक इसका कोई संकेत नहीं मिला है।
समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए जाने के पीछे सबसे अहम फैक्टर विधानसभा के चुनाव को माना जा रहा है. लोकसभा से पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं। 4 में से 3 राज्यों में बीजेपी सरकार में आने की तैयारी कर रही है, जबकि एमपी में सत्ता बचाने की चुनौती है। चारों ही राज्यों में बीजेपी की लोकल लीडरशिप काफी कमजोर स्थिति है।
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुखपत्र ऑर्गेनेजाइर ने लोकल लीडरशिप को लेकर हिदायत भी दी है। बात मध्य प्रदेश की करे तो यहां 2018 में बीजेपी हार गई थी, लेकिन कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद फिर सरकार में आ गई। 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के पास 130 विधायक हैं, लेकिन पार्टी के लिए इस बार सत्ता वापसी आसान नहीं है।
बीजेपी के भीतर की गुटबाजी हाल ही में सुर्खियां बटोर रही थी। सरकार के 2 मंत्री गोपाल भार्गव और गोविंद राजपूत ने एक मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुताबिक बीजेपी में अभी 3 गुट सक्रिय है। 1. शिवराज गुट 2. महाराज (सिंधिया) गुट और 3. नाराज गुट। दूसरी ओर कांग्रेस इस बार एकजुट है और 150 सीट जीतने का दावा कर रही है। नेताओं की घरवापसी और गठबंधन की रणनीति भी कांग्रेस अपना रही है।
आदिवासी संगठन जयस और गंगोपा को भी साधने का प्रयास कर रही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और यहां रिवाज के सहारे सत्ता वापसी को लेकर उत्साहित है, लेकिन राज्य बीजेपी के एकमात्र क्षत्रप वसुंधरा राजे साइडलाइन हैं। राजे को बीजेपी ने राज्य में अब तक कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है। इसके पीछे बीजेपी हाईकमान से तनातनी को वजह माना जा रहा है।
राजस्थान कांग्रेस में भी भारी गुटबाजी है, लेकिन पार्टी लगातार जीतकर आने का दावा कर रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 101 सीटों पर जीत मिली थी. वर्तमान में पार्टी के पास 108 विधायक हैं, जबकि 10 से ज्यादा निर्दलीय ने समर्थन दे रखा है। छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी कई खेमों में बंटी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पूरे परिवार समेत साइडलाइन हैं। बीजेपी ने साल के शुरुआत में गुटबाजी रोकने के लिए कई फेरबदल किए थे, लेकिन सब ढाक के तीन पात साबित हुए हैं।
सियासी गलियारों में समय से पहले चुनाव कराए जाने के पीछे इसे भी वजह माना जा रहा है। बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन-वन इलेक्शन की पैरवी कर चुके हैं। 2023 के अंतिम में और 2024 में कुल 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में चर्चा है कि वन नेशन-वन इलेक्शन की तर्ज पर एक साल में एक चुनाव कराया जा सकता है, जिससे सभी राज्यों के चुनाव एक साथ निपट सके।
बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस, डीएमके, सीपीएम समेत 15 पार्टियां विपक्षी एकता बनाने की कवायद में जुटी है। इसी महीने विपक्षी पार्टियों की पटना में पहली मीटिंग है। अभी सीट बंटवारे समेत कई मुद्दों पर पेंच फंसा हुआ है। समय से पहले चुनाव कराए जाने के पीछे इस फैक्टर को भी अहम माना जा रहा है। विपक्ष 2 मुद्दों पर सरकार को घेरने की संभावित रणनीति पर काम कर रही है, जिसमें पहला मुद्दा जातीय जनगणना का है। यह मुद्दा अभी पूरे देश में अंडर करंट पैदा नहीं कर पाया है।
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