नीतीश कुमार ने मुसलमानों से एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने की अपील की

नीतीश कुमार ने मुसलमानों से एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने की अपील की

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार अपनी चरम सीमा पर है। सभी सियासी पार्टियां अपने उम्मीदवारों को चुनाव जिताने के लिए अपील कर रही हैं। कुछ महीने पहले सत्ता परिवर्तन कर “इंडिया गठबंधन” को सत्ता में लाने का दावा करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में ही सत्ता परिवर्तन कर दिया और महागठबंधन को छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली। लेकिन अब उन्हें अपने मुस्लिम वोट बैंक के खिसक जाने का डर सता रहा है।

बात 2017 से बिगड़ी जब नीतीश कुमार दोबारा भारतीय जनता पार्टी के साथ चले गए तो काफी हद तक मुसलमान उनसे मायूस होकर दूर चले गए। ऐसा समझा जाता है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने तो उनकी पार्टी को वोट नहीं ही दिया, अधिकतर हिंदू वोटरों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। यही कारण है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि इसमें चिराग़ पासवान का केवल जदयू के सामने अपना उम्मीदवार खड़ा करना भी एक कारण था।

अपने सियासी वजूद के लिए जद्दोजहद में लगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने चुनावी भाषणों में जहाँ 2005 के पहले के बिहार की याद दिला रहे हैं तो वहीं वह मुस्लिम समुदाय से भी मुखातिब हो रहे हैं। जदयू के सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार को इस बात का एहसास है कि मुस्लिम समुदाय उनके भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल जाने के कारण सशंकित है। हालाँकि, नीतीश कुमार पहले भी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहे हैं लेकिन पिछले कई वर्षों में कई ऐसे मामले हुए जिनके कारण मुसलमानों का नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ है।

जदयू के लोगों को लगता है कि मुस्लिम समुदाय न केवल भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को वोट नहीं देगा बल्कि उनकी पार्टी जदयू समेत एनडीए के अन्य सहयोगी दलों के उम्मीदवारों से भी दूरी बनाए रखेगा। ऐसे में नीतीश कुमार अपने भाषणों में मुसलमानों से भी मुख़ातिब हो रहे और उनसे समर्थन मांग रहे। सोमवार को शेखपुरा में आयोजित सभा में नीतीश ने मुसलमानों से एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने की अपील की और उन्होंने यह दावा किया कि एनडीए के शासनकाल में मुसलमानों की तरक्की हुई।

उन्होंने कब्रिस्तानों की घेराबंदी की बात भी याद दिलाई। उनका दावा है कि उनके शासनकाल में आठ हजार क़ब्रिस्तानों की घेराबंदी कराई गई। नीतीश ने इससे पहले भी अपनी चुनावी सभा में मुसलमान से ऐसे ही अपील की थी। नीतीश कुमार को मुसलमानों से ये बातें क्यों कहनी पड़ रही हैं जबकि घेराबंदी तो मठ और मंदिरों की भी हो रही है? यह सही है कि कब्रिस्तानों की घेराबंदी नीतीश कुमार के शासन की खास बात है और यह भी सही है कि इससे बड़े स्तर पर सांप्रदायिक विवाद थमे हैं।

मुसलमानों के बीच नीतीश कुमार की व्यक्तिगत छवि अब भी सेक्यूलर नेता की है लेकिन इस बीच कई मुद्दों पर उनकी पार्टी ने मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल न रखकर भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे के अनुसार काम किया। उदाहरण के लिए नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का उनकी पार्टी जेडीयू ने समर्थन किया। ट्रिपल तलाक कानून के मामले में भी जदयू का रवैया भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे के अनुसार रहा।

हालाँकि नीतीश कुमार ने एनआरसी के बारे में कह रखा है कि यह बिहार में लागू नहीं होगा लेकिन उनके पलटने की आदत की वजह से उन पर भरोसे में कमी आई है। सीएए और ट्रिपल तलाक़ के अलावा अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध करने की घोषित नीति के बावजूद उनकी पार्टी इस मामले में भी भाजपा के साथ हो गई। ऐसे में मुसलमानों को शक हो सकता है कि एनआरसी के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार कहीं पलट ना जाएं।

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