मध्य प्रदेश के शिक्षामंत्री ने राजा राम मोहन राय को अंग्रेजों का एजेंट बताया

मध्य प्रदेश के शिक्षामंत्री ने राजा राम मोहन राय को अंग्रेजों का एजेंट बताया

मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने शनिवार को दावा किया कि समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन के एजेंटों में शामिल थे। भारतीय जनता पार्टी के इस नेता ने आरोप लगाया कि राय ने अंग्रेजों के कहने पर अंग्रेज़ी शिक्षा के ज़रिए जनता के धार्मिक विश्वास को बदलने की कोशिश की।

इंदर परमार ने यह बयान राज्य के आगर मालवा ज़िले में जनजातीय नेता बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में दिया। परमार ने आगे कहा कि अंग्रेज हुकूमत ने अंग्रेज़ी शिक्षा के ज़रिए जनता के धर्म और विश्वास को बदलने के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कई भारतीयों को “नकली समाज सुधारक” के रूप में पेश किया था। उन्होंने कहा कि बंगाल और आसपास के क्षेत्रों में अंग्रेज़ी शिक्षा के ज़रिए लोगों के विश्वास को बदलने की एक “शैतानी साज़िश” चल रही थी, और राजा राम मोहन राय उन्हीं में से एक थे।

परमार ने बिरसा मुंडा की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुंडा ने इस धार्मिक परिवर्तन के चक्र को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जनजातीय समुदाय को बचाया। हालांकि जब इस बयान पर बढ़ा, तो परमार ने रविवार को एक वीडियो संदेश जारी कर अपने बयान पर माफी माँगी और कहा कि उनसे मोहन राय के बारे में गलत बयान हो गया। उन्होंने कहा कि वह इस समाज सुधारक का सम्मान करते हैं और इस गलती पर उन्हें खेद है।

उल्लेखनीय है कि उन्नीसवीं सदी के अंत (1890 के दशक) में बिरसा मुंडा ने छोटानागपुर क्षेत्र में ब्रिटिश शासन और उससे जुड़े लोगों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसे “ऊलगुलान” कहा जाता है। उनका मुख्य उद्देश्य जनजातीय स्वशासन और ज़मीन संबंधी दमनकारी नीतियों का अंत था। हालांकि अंग्रेज़ों ने इस विद्रोह को दबा दिया, फिर भी यह जनजातीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय माना जाता है। इस संघर्ष ने बिरसा मुंडा को देश की सबसे सम्मानित जनजातीय हस्तियों में बदल दिया।

वहीं राजा राम मोहन राय को उन्नीसवीं सदी में सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई कट्टर प्रथाओं का विरोध किया, सती प्रथा के अंत की वकालत की और विधवा पुनर्विवाह सहित महिलाओं के अधिकारों के समर्थन में आवाज़ उठाई। वे ब्रह्मो सभा की स्थापना में भी शामिल थे, जो आगे चलकर ब्रह्मो समाज बना।

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