केशव प्रसाद मौर्य ने पिछड़े वर्गों के ‘हित’ के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरा

केशव प्रसाद मौर्य ने पिछड़े वर्गों के ‘हित’ के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरा

उत्तर प्रदेश: यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच लंबे समय से तनाव की खबरें आ रही हैं। पार्टी के भीतर यह सवाल उठा रहा है कि सरकार में किसका दबदबा है। आलाकमान के बार-बार हस्तक्षेप के बावजूद मामला सुलझता हुआ नजर नहीं आ रहा है। अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ने अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लिया है। एक बार फिर केशव मौर्य ने पिछड़े वर्गों के ‘हित’ के मुद्दे पर योगी को घेरने की कोशिश की है।

ताजा मामला नौकरियों के लिए की जाने वाली ‘आउटसोर्सिंग‘ में आरक्षण को लागू न करने का है। बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल पहले ही यह मुद्दा उठा चुकी थीं। इस मामले पर उन्होंने मुख्यमंत्री योगी को पत्र भी लिखा था। आरोप है कि योगी राज के तहत पिछड़ों और दलितों को अनुबंध की नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। अब इसी मुद्दे को केशव प्रसाद मौर्य ने भी उठाया है।

मौर्य कैंप का दावा है कि उन्हें चुनावों से पहले ही इस खतरे का आभास हो गया था। उनकी ओर से यूपी सरकार से कई बार जानकारी मांगी गई थी। खुद मौर्य ने ‘पर्सनल डिपार्टमेंट’ के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखकर पूछा था कि आउटसोर्सिंग के तहत दी गई नौकरियों में कितने लोगों को आरक्षण का लाभ मिला है, लेकिन उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई।

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि आउटसोर्सिंग पर दी जाने वाली नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जा रहा है जबकि यूपी सरकार ने 2008 में ही अनुबंध पर दी जाने वाली नौकरियों में यह व्यवस्था लागू की थी। उन्होंने योगी सरकार से पूछा है कि अब तक कितने पिछड़े लोगों और दलितों को आउटसोर्सिंग के तहत नौकरियां दी गई हैं। इसके लिए उन्होंने 15 जुलाई को नियुक्तियों और स्टाफ के विभाग प्रमुख को पत्र लिखा है।

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने केशव मौर्य को पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा नेता करार दिया है। इस तरह से सरकार में दो खेमे बनते हुए नजर आ रहे हैं। अभी तक, केवल बीजेपी के विरोधी ही योगी सरकार पर आलोचना कर रहे थे, लेकिन अब उनकी सहयोगी पार्टियां और उनकी पार्टी के लोग ही उन्हें आड़े हाथों ले रहे हैं और पिछड़े वर्गों के विरोधी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।

कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में इस तरह की स्थिति पैदा होने से पहले ही पार्टी की केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनावों में बीजेपी की खराब प्रदर्शन के बारे में राज्य के उच्च नेताओं से लगातार राय ले रही थी। इसी तरह पार्टी में मतभेद की बातें सामने आईं। पार्टी की केंद्रीय नेतृत्व को अब तक जो ‘फीडबैक’ मिला है, उसके अनुसार पार्टी से पिछड़े लोगों और दलितों का निराश होना एक बड़ी वजह है।

गौरतलब है कि हाल ही में उप मुख्यमंत्री ने 16 जुलाई को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी और राज्य में चुनावों में बीजेपी की खराब प्रदर्शन के बारे में अपनी राय दी थी। बैठक के अगले ही दिन मौर्य ने बुधवार को एक्स (ट्विटर) पर लिखा था कि “पार्टी, सरकार से बड़ी है और मेरे कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा अपना दर्द है।”

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