पत्रकार गौरी लंकेश हत्या केस: आरोपियों को जमानत, हिंदू संगठनों का जश्न
पत्रकार गौरी लंकेश हत्या मामले में शामिल आरोपियों को जमानत मिलने के बाद इस घटना ने एक नया मोड़ ले लिया है। बेंगलुरु की सत्र अदालत द्वारा 9 अक्टूबर 2024 को प्रमुख आरोपियों परशुराम वाघमोर और मनोहर यादव को जमानत दी गई, जिसके तुरंत बाद 11 अक्टूबर को उनकी जेल से रिहाई हुई। रिहाई के बाद हिंदुत्व संगठनों द्वारा धूमधाम से उनका स्वागत किया गया, जिससे समाज में गहरी नाराजगी और विवाद पैदा हो गया है।
यह घटना तब और विवादास्पद हो गई जब इन आरोपियों का स्वागत शाल, हार और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ किया गया। कालिका देवी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया गया, जिसमें मूर्ति पर फूल चढ़ाए गए। इसके साथ ही, इस स्वागत समारोह की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगे, जिसने व्यापक बहस को जन्म दिया है।
बता दें कि, यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब इस तरह के अपराधियों की रिहाई पर जश्न मनाया गया है, और आरोपियों का स्वागत किया गया है। इससे पहले बिलक़ीस बानो गैंगरेप जैसे जघन्य अपराध में सज़ा काट रहे आरोपियों को जब गुजरात सरकार ने सज़ा माफ़ कर रिहा कर दिया था तब भी गैंगरेप के सज़ायाफ्ता आरोपियों की रिहाई पर भी इसी तरह का जश्न मनाया गया था। उन्हें मिठाई खिलाई गई थी और हार पहना कर उनका स्वागत किया गया था।
गौरी लंकेश, जिन्हें 5 सितंबर 2017 को उनके बेंगलुरु स्थित घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, भारतीय पत्रकारिता में एक प्रखर और निर्भीक आवाज थीं। वह हमेशा से कट्टर विचारधारा और सांप्रदायिकता की मुखर आलोचक रही थीं। उनकी हत्या ने देश भर में आक्रोश पैदा किया और यह मामला लंबे समय से सुर्खियों में है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस वर्ष सितंबर में मामले के चार अन्य आरोपियों को भी जमानत दी थी। अब सत्र अदालत से परशुराम वाघमोर और मनोहर यादव को भी जमानत मिल जाने के बाद, इस मामले में एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। इन दोनों की रिहाई पर हिंदू संगठनों द्वारा किया गया भव्य स्वागत और धार्मिक आयोजनों ने समाज के एक बड़े हिस्से में गहरी चिंता और असंतोष पैदा किया है। यह घटना विशेष रूप से इसलिए चिंताजनक मानी जा रही है, क्योंकि यह न केवल कानून और न्याय की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण को भी उजागर करती है।
गौरी लंकेश की हत्या और उससे जुड़ी कानूनी कार्यवाही पिछले कई वर्षों से चर्चा में रही है। उनकी हत्या को न केवल व्यक्तिगत हमले के रूप में देखा गया, बल्कि इसे उन सभी के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में देखा गया, जो कट्टरपंथ और असहिष्णुता के खिलाफ आवाज उठाते हैं।