असम में बेदख़ली अभियान पर, जमीयत और सरकार आमने-सामने
असम के गोलपाड़ा जिले में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार द्वारा चलाए जा रहे बेदख़ली अभियान को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद का सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल प्रभावित इलाकों का दौरा करने पहुंचा। संगठन के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दौरे के बाद सरकार की कार्रवाई को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि बेदख़ली अभियान सुप्रीम कोर्ट के निर्धारित नियमों के तहत होना चाहिए, न कि नफरत फैलाने वाले तरीके से।
मौलाना अरशद मदनी की आपत्ति
मौलाना मदनी ने मीडिया से कहा कि उन्होंने कई जगह जाकर हालात देखे। उनके अनुसार, लोगों को जिस ढंग से हटाया गया है, वह दुखद और पीड़ादायक है। उन्होंने कहा कि समुदाय और देश व्यवस्था से बनते हैं, और यदि उसी व्यवस्था को तोड़कर कार्रवाई की जाए, तो यह अन्यायपूर्ण और निंदनीय है। मदनी ने साफ किया कि जमीयत अतिक्रमण हटाने का विरोध नहीं करती, लेकिन किसी भी बेदख़ली को क्रूरता और अन्यायपूर्ण ढंग से नहीं होना चाहिए।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की तीखी प्रतिक्रिया
मदनी के आरोपों पर मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सख्त बयान दिया। उन्होंने कहा, “मदनी कौन हैं? क्या खुदा हैं? कांग्रेस के समय में उनकी बहादुरी थी, भाजपा सरकार के समय में कोई सबूत नहीं है। अगर वह ज्यादा करेंगे, तो मैं उन्हें जेल भेज दूंगा। मुख्यमंत्री मैं हूं, मदनी नहीं।” सरमा ने यह भी कहा कि सरकार ने उन्हें इलाके में जाने की इजाजत इसलिए दी ताकि वे देख सकें कि जो लोग अवैध कब्जा करते हैं, उनका हश्र क्या होता है। उन्होंने आरोप लगाया कि बाहरी लोग ग्रामीणों को जमीन के मुद्दों पर गुमराह करते हैं और बाद में भाजपा पर दोष मढ़ते हैं, लेकिन भाजपा किसी से डरने वाली नहीं है।
यह विवाद तब और बढ़ गया जब मुख्यमंत्री सरमा ने पहले कहा था कि अगर जमीयत के नेता राज्य में गड़बड़ी करेंगे तो उन्हें गिरफ्तार कर बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। इस पर अरशद मदनी ने पलटवार करते हुए कहा कि वे कल से ही असम में हैं और किसी को हक नहीं है कि हर मुसलमान को बांग्लादेश भेजने की बात करे। मदनी ने बिना नाम लिए कहा कि जो लोग देश में नफरत फैला रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान जाना चाहिए, न कि भारत की खूबसूरत सभ्यता को बिगाड़ना चाहिए।
बता दें कि, असम सरकार लंबे समय से राज्य में अतिक्रमण हटाने और भूमि सुधार अभियान चला रही है। सरकार का कहना है कि कई बाहरी लोग अवैध रूप से जमीन पर कब्जा किए बैठे हैं, जिन्हें हटाना जरूरी है। वहीं, विपक्ष और जमीयत जैसे संगठन इसे समुदाय विशेष को निशाना बनाने वाला अभियान बताते हैं।


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