इज़रायली सरकार ने भारत से 10,000 निर्माण श्रमिकों की मांग की
तेल अवीव: इज़रायली सरकार ने हाल ही में भारत से बड़ी संख्या में निर्माण कार्यकर्ताओं और देखभाल कर्मियों की भर्ती की मांग की है। नेशनल स्किल्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन काउंसिल (NSDC) ने जानकारी दी कि दोनों देशों के बीच हुए एक द्विपक्षीय समझौते के तहत इज़रायल ने 10,000 निर्माण कार्यकर्ताओं और 5,000 देखभाल कर्मियों की भर्ती का अनुरोध किया है। यह मांग ऐसे समय में आई है जब पश्चिम एशिया के देशों, विशेष रूप से इज़रायल, में भारतीय मजदूरों की बड़ी संख्या में मौजूदगी पहले से ही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस समय इज़रायल में 10,000 से अधिक भारतीय मजदूर विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
हालांकि, यह भी बताया जा रहा है कि इज़रायल ने हाल ही में 500 भारतीय कार्यकर्ताओं को वापस भेजा है। इन कार्यकर्ताओं को इज़रायल ने पहले फिलिस्तीनी मजदूरों के स्थान पर भर्ती किया था, लेकिन गाजा में इज़रायली युद्ध के कारण फिलिस्तीनी कामगारों के कामकाजी परमिट रद्द हो गए थे। इन भारतीय कामगारों को इज़राइली श्रम बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार आवश्यक कौशल की कमी के चलते वापस भेजा गया।
इज़रायल की भर्ती योजना और समझौता
इज़रायल की योजना लगभग 90,000 फिलिस्तीनी कार्यकर्ताओं को बदलने की है, जिन्हें भविःष्य में नौकरी के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इसके मद्देनजर, इज़रायल ने भारत के साथ नवंबर में एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत, इज़रायल भारतीय श्रमिकों की बड़ी संख्या में भर्ती कर रहा है, खासकर निर्माण क्षेत्र में। इस साल अप्रैल में, नेशनल स्किल्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने भारत से लगभग 2,600 कार्यकर्ताओं को इस समझौते के तहत इज़रायल भेजा था।
पहले चरण में, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और तेलंगाना से लगभग 10,000 भारतीय मजदूरों का चयन किया गया, जिन्हें निर्माण कार्यों में तैनात किया गया। यह मजदूर विभिन्न निर्माण कार्यों जैसे फ्रेमवर्क, आयरन बेंडिंग, प्लास्टरिंग और सिरेमिक टाइलिंग में काम करेंगे। इज़रायली सरकार ने चार प्रकार की नौकरियों के लिए विशेष रूप से भारतीय श्रमिकों की भर्ती की मांग की है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अगली भर्ती प्रक्रिया महाराष्ट्र में हो सकती है, जहां से और भी अधिक भारतीय मजदूरों का चयन किया जाएगा।
इज़रायल की पॉलिसी में बदलाव
तेल अवीव में इज़रायल की पॉप्युलेशन, इमिग्रेशन और बॉर्डर अथॉरिटी के अनुसार, इज़राइल अपनी श्रम नीति में बदलाव कर रहा है, जिसमें फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह अन्य देशों, खासकर भारत जैसे देशों के कुशल और अर्ध-कुशल मजदूरों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसका मुख्य कारण ग़ाज़ा पट्टी में जारी युद्ध और उससे जुड़ी राजनीतिक अस्थिरता है, जिसके कारण फिलिस्तीनी कामगारों की उपलब्धता और पर असर पड़ा है।


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