इंदिरा गाँधी को था हत्या का आभास, अंतिम भाषण में दिए थे संकेत 31 अक्टूबर देश अपनी पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद कर रहा है।
इंदिरा गांधी भारतीय जनता के बीच जितनी लोकप्रिय थी उसकी कोई सीमा है ना ही कोई अंदाजा। इंदिरा गांधी ही थी जिन्होंने गरीबी हटाओ के नारे को सार्थक कर दिखाया था।
11 वर्ष की आयु में ही इंदिरा गांधी ने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बच्चों की वानर सेना बनाई थी। 1938 में वह औपचारिक रूप से इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुई और 1947 से 64 तक देश के प्रथम प्रधानमंत्री अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के साथ काम शुरू कर दिया था।
नेहरू जी के निधन के बाद कांग्रेस में उनका ग्राफ अचानक ही काफी ऊपर पहुंच गया तथा देश और पार्टी को उनमें राष्ट्र नेता की झलक नजर आने लगी। लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सबसे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पदभार संभालने वाली इंदिरा गांधी ने शास्त्री जी के निधन के बाद देश का प्रधानमंत्री पद भी संभाला।
किसी समय गूंगी गुड़िया कहलाने वाले इंदिरा गांधी ने देश के विकास एवं उन्नति के लिए बेहद कड़े एवं कठोर फैसले लिए। अलग बांग्लादेश राष्ट्र के गठन से लेकर बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे साहसिक फैसले भी इंदिरा गांधी ने ही लिए। इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपातकाल को उनकी सबसे बड़ी गलती के रूप में याद किया जाता है।
इंदिरा गांधी की ऐतिहासिक सफलता के चलते इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा का नारा जोर-शोर से लगाया जाता था लेकिन उनका एक फैसला ही था जो उनकी जान जाने का कारण भी बना। वह था ऑपरेशन ब्लू स्टार।
जून 1984 में सिख चरमपंथ की आग में झुलस रहे पंजाब को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने का आदेश देते हुए सेना को स्वर्ण मंदिर में जाने का आदेश दे दिया था। इस ऑपरेशन में चरमपंथियों समेत कई निर्दोष नागरिक भी मारे गए थे।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद ही इंदिरा गांधी को अपनी हत्या का आभास होने लगा था और इसका जिक्र उन्होंने अपनी हत्या से 1 दिन पहले उड़ीसा की एक रैली में किया भी था।
अक्टूबर 1984 में उड़ीसा में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। भुवनेश्वर में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए अपनी हत्या से 1 दिन पहले इंदिरा गांधी ने जो भाषण दिया था उससे भली-भांति महसूस हो रहा था कि उन्हें अपनी हत्या की आशंका है।
इंदिरा गांधी आम तौर पर अपने सलाहकार एच वाई शारदा प्रसाद या अन्य साथियों के द्वारा लिखे गए भाषण को पढ़ती थी। उस दिन उन्होंने अपनी टीम द्वारा तैयार किए गए भाषण के स्थान पर अपने मन से ही बोलना शुरू किया।
इंदिरा गांधी ने कहा “मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां ना रहूं। मुझे चिंता नहीं, मैं रहूं या ना रहूं मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।
इंदिरा गांधी के भाषण को सुनकर वहां मौजूद पार्टी नेता एवं अधिकारी सभी चकित रह गए। किसी को भी समझ में नहीं आया कि इंदिरा जी ने अपने भाषण में इन बातों का उल्लेख क्यों किया है। जनसभा को संबोधित करने के बाद इंदिरा गांधी दिल्ली लौट आई। बाद में सोनिया गांधी ने अपनी किताब में लिखा था कि 30 अक्टूबर 1984 की रात इंदिरा गांधी को नींद नहीं आई थी।
सोनिया गांधी रात में दमे की दवा लेने के लिए उठी तो इंदिरा गांधी उस वक्त भी जाग रही थी और उन्होंने दवा खोजने में सोनिया गांधी की मदद भी की और कहा कि अगर उन्हें रात में कोई भी परेशानी हो तो वह उन्हें आवाज दे दें।
इंदिरा गांधी अगले दिन सुबह सवेरे अपनी दिनचर्या और व्यस्त कार्यक्रम में जुट गई। उन्हें सुबह सवेरे ही अपनी डाक्यूमेंट्री बना रहे लोगों से मुलाकात करनी थी। विदेश से आई कई शख्सियतों से भी उन्हें मुलाकात करना थी। सुबह करीब 9:00 बजे डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले लोगों से मुलाकात करने के लिए इंदिरा गांधी अपने कमरे से बाहर आईं तभी उनकी सुरक्षा में खड़े सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने आगे बढ़कर उन्हें नमस्कार किया और उन पर कई राउंड गोलियां चलाते हुए उनकी हत्या कर दी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बीच सेना को स्वर्ण मंदिर में जाने का आदेश देने वाली इंदिरा गांधी को इस बात की आशंका थी। सिखों के पवित्र धर्मस्थल को काफी नुकसान पहुंचा था और सिख समुदाय इस बात से काफी नाराज भी था। यही डर इंदिरा गांधी को खाए जा रहा था कि स्वर्ण मंदिर के अपमान के नाम पर अलगाववादी उनकी हत्या कर सकते हैं।
Gayyur Alam