ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत को भुखमरी में 111वें स्थान पर बताया गया

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत को भुखमरी में 111वें स्थान पर बताया गया

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) की 2023 की सालाना रिपोर्ट आ गई है। भारत 125 देशों में 111वें नंबर पर है। भारत को 28.7 GHI स्कोर के साथ भुखमरी के मामले में गंभीर स्थिति वाला देश बताया गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में इस बार भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है। पिछले साल 107वें स्थान पर था।

भारत ने 2000 और 2015 के बीच महत्वपूर्ण प्रगति की। उसका स्कोर 2000 में 38.4 से सुधरकर 2008 में 35.5 और 2015 में 29.2 हो गया। इस साल के सूचकांक में भारत का स्कोर 28.7 है, जो भूख के मामले में गंभीर स्तर को दर्शाता है। इस मामले में 2015 के बाद से भूख के खिलाफ इसकी प्रगति लगभग रुकी हुई है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत के अन्य पड़ोसी देशों को देखें तो पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल भी इससे बेहतर स्थिति में हैं। वैश्विक भूख सूचकांक 2023 में पाकिस्तान 102वें स्थान पर, बांग्लादेश 81वें स्थान पर, नेपाल 69वें स्थान पर और श्रीलंका 60वें स्थान पर है।

हालाँकि भारत सरकार ने सूचकांक को ग़लत पैमाना आपनाए जाने की बात कहते हुए खारिज कर दिया। इसने कहा है कि सूचकांक भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दिखाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि सूचकांक गंभीर कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों से ग्रस्त है और दुर्भावनापूर्ण इरादे को दिखाता है।

मंत्रालय ने कहा, ‘सूचकांक भूख का एक गलत पैमाना है और इसमें गंभीर सिस्टेमैटिक मुद्दे हैं। सूचकांक की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले चार संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक ‘कुपोषित जनसंख्या का अनुपात’ 3,000 के बहुत छोटे नमूना आकार पर किए गए एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है।

पिछले साल जब विश्व विषमता रिपोर्ट आई थी तो उसको भी केंद्र सरकार ने ख़ारिज कर दिया था। रिपोर्ट में कहा गया था भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है। पिछले साल की विश्व विषमता रिपोर्ट के अनुसार भारत की शीर्ष 10% आबादी की आय नीचे के 50% लोगों की आय का 22 गुना थी। 12 लाख रुपये की वार्षिक आय वाले लोग देश के शीर्ष 10% लोगों में शामिल थे। देश की औसत आय सिर्फ 2 लाख रुपये थी। हालाँकि, शीर्ष 1% की औसत वार्षिक आय 44 लाख रुपये से अधिक थी।

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