किसान के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए: मधुरा स्वामीनाथन

किसान के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए: मधुरा स्वामीनाथन

भारत रत्न स्वामीनाथन की बेटी मधुरा स्वामीनाथन ने कहा कि, किसान हमारे अन्नदाता हैं और उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए। मंगलवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने ये भी कहा कि किसानों के लिए सोचने वाले और उनका भला चाहने वाले एमएस स्वामीनाथन को अगर भारत रत्न मिलता है, तो फिर किसानों की भी बात सुनी जानी चाहिए। हमें उन्हें भी साथ लेकर चलना ही होगा।

मधुरा ने कहा- “पंजाब के किसान आज दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं। अखबार की रिपोर्टों के अनुसार, हरियाणा में उनके लिए जेलें तैयार की जा रही हैं, बैरिकेड्स हैं, उन्हें रोकने के लिए हर तरह की चीजें की जा रही हैं। ये किसान हैं, वे अपराधी नहीं हैं।“ उन्होंने कहा कि “मैं आप सभी से, भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों से अनुरोध करती हूं… हमें अपने अन्नदाताओं से बात करनी होगी। हम उनके साथ अपराधियों के रूप में व्यवहार नहीं कर सकते हैं। हमें समाधान ढूंढना होगा।“

एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने का जश्न मनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में मंगलवार को एक समारोह आयोजित किया गया था। उसी कार्यक्रम में स्वामीनाथन की अर्थशास्त्री बेटी मधुरा स्वामीनाथन ने आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोके जाने की खबरों का जिक्र किया और कहा कि देश के वैज्ञानिकों को किसानों से परामर्श करना चाहिए। उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे वायरल हो रहा है।

मधुरा स्वामीनाथन ने यह कहकर अपनी बात खत्म की- “कृपया, यह मेरा अनुरोध है। मुझे लगता है कि अगर हमें एम.एस. को सम्मान देना है और उनका सम्मान करना है। तो भविष्य के लिए हम जो भी रणनीति बना रहे हैं उसमें हमें किसानों को अपने साथ लेना होगा।”

MS स्वामीनाथन की दूसरी बेटी और WHO की पूर्व चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि वे उन पहले लोगों में से एक थे, जिन्होंने 60 के दशक के अंत और 70 के दशक की शुरुआत में क्लाइमेंट चेंज के बारे में बात की, जब बहुत से लोग इस बारे में नहीं सोच रहे थे। सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि मेरे पिता की नीति खुले दरवाजे वाली थी, जहां कोई भी उनसे बात करने के लिए उनके ऑफिस या घर में आ सकता था।

उन्होंने कहा कि मेरे पिता को छात्रों के साथ बातचीत करना पसंद था क्योंकि उनका मानना था कि छात्र ही भविष्य में समस्याओं का समाधान करेंगे। उन्होंने कहा कि मेरे पिता कृषि और किसानों के कल्याण, विशेष रूप से छोटे किसानों और मछुआरों के साथ-साथ हाशिए पर रहने वाले आदिवासी समुदायों के लिए समर्पित थे। उन्हें हमेशा चिंता होती थी कि जो लोग हमारे लिए भोजन उगाते हैं, वे वास्तव में बहुत स्वस्थ या समृद्ध जीवन नहीं जी रहे हैं।

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