एडिटर्स गिल्ड ने नए आपराधिक कानूनों के विस्तृत अध्ययन की मांग की
नई दिल्ली: नेशनल लेवल की संपादकों और पत्रकारों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सोमवार को गृह मंत्रालय से नए आपराधिक कानूनों का विस्तृत अध्ययन करने की अपील की है ताकि पत्रकारों को काम के दौरान डराने-धमकाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग न किया जा सके। ध्यान रहे कि 1 जुलाई 2024 से तीन नए आपराधिक कानूनों – भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 का प्रभावी कार्यान्वयन हो चुका है। ये कानून, पहले से प्रचलित भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1873 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की जगह ले चुके हैं।
गृहमंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में एडिटर्स गिल्ड ने लिखा कि पिछली कई सरकारों के कार्यकाल में आपत्तिजनक और अपमानजनक शब्दों से जुड़े कानूनों का पत्रकारों के खिलाफ उपयोग किया गया है। एडिटर्स गिल्ड के अनुसार अपने पेशे का निर्वहन करते हुए पत्रकारों को जोखिम उठाना पड़ता है और संवेदनशील विषयों, कड़वे सच और सच्चाई को सामने लाना होता है इसलिए उनके संरक्षण और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना आवश्यक है। एडिटर्स गिल्ड ने भारतीय न्याय संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में उन प्रावधानों की सूची तैयार की है जिनका संभावित रूप से पत्रकारों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए को भारतीय न्याय संहिता में धारा 152 के तहत पुन: प्रस्तुत किया गया है जिसके तहत भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता के खिलाफ कार्यों के लिए सजा निर्धारित है। नए कानूनों में इन कार्यों का दायरा बढ़ा दिया गया है।
नए कानूनों के तहत झूठी या भ्रामक जानकारी प्रकाशित करने वाले और देश की संप्रभुता को खतरे में डालने वाले पर मुकदमा चलाया जाएगा। एडिटर्स गिल्ड के अनुसार, इसका दायरा बढ़ा दिया गया है जो पत्रकारों के खिलाफ उपयोग किया जा सकता है। संगठन के अनुसार, झूठी, भ्रामक या देश विरोधी जानकारी की पहचान के लिए कोई पारदर्शी प्रक्रिया मौजूद नहीं है। एडिटर्स गिल्ड के अनुसार, पिछले दशक में यह स्पष्ट हो चुका है कि योजनाबद्ध अपराध और आतंकवाद से जुड़े कानूनों का पत्रकारों के खिलाफ उपयोग हो रहा है। संगठन ने हिरासत और जमानत से संबंधित कानूनों में स्पष्टता न होने पर चिंता व्यक्त की है।
एडिटर्स गिल्ड ने मांग की कि पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हर आपराधिक शिकायत का एक उच्च स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए और एफआईआर दर्ज किए जाने से पहले प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को सूचित किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के कारण यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या पत्रकारों की पेशेवर स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश हो रही है। इसके अलावा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने गृह मंत्रालय से बैठक के लिए समय मांगा है ताकि मीडिया की स्वतंत्रता के लिए संभावित खतरों पर एक रचनात्मक बातचीत हो सके।