दरबार मू’ परंपरा को अवश्य बहाल किया जाएगा: फारूक अब्दुल्ला 

दरबार मू’ परंपरा को अवश्य बहाल किया जाएगा: फारूक अब्दुल्ला 

नैशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने अपने बयान में ‘दरबार मू’ की परंपरा की अहमियत पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यह परंपरा जम्मू-कश्मीर की संस्कृति और प्रशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। ‘दरबार मू’ के तहत हर छह महीने में जम्मू और श्रीनगर के बीच सरकारी कामकाज का स्थानांतरण होता है, जो दशकों से जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए एक विशेष परंपरा रही है। यह परंपरा सर्दियों में जम्मू और गर्मियों में श्रीनगर से कामकाज चलाने की अनुमति देती है, जिससे दोनों क्षेत्रों को समान रूप से प्रशासनिक लाभ मिलता है।

फारूक अब्दुल्ला ने इस परंपरा को बहाल करने पर जोर देते हुए कहा कि यह कश्मीर के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। उनके अनुसार, इसे समाप्त करने से जनता की भावनाओं को ठेस पहुंची है, और इसे बहाल करना जरूरी है ताकि दोनों क्षेत्रों के लोगों को विकास का लाभ समान रूप से मिल सके।

अखनूर मुठभेड़ पर डॉक्टर अब्दुल्ला ने सख्त रुख अपनाते हुए आतंकवाद को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि आतंकवादियों का आना-जाना जारी रह सकता है, लेकिन सुरक्षा बल उन्हें रोकने और निष्प्रभावी करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उनके अनुसार, “आतंकवादी आते रहेंगे और हम उन्हें मारते रहेंगे,” यह संदेश देता है कि राज्य सरकार और सुरक्षा एजेंसियां आतंकवाद के खिलाफ मुस्तैदी से खड़ी हैं। उन्होंने इसे जम्मू-कश्मीर की स्थिरता और शांति के लिए बेहद जरूरी कदम बताया। उनका यह बयान सुरक्षा बलों के मनोबल को बढ़ावा देने के रूप में भी देखा जा रहा है, जो आतंकवाद के खिलाफ लगातार जंग लड़ रहे हैं।

दिवाली के पर्व के संबंध में डॉक्टर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि यह त्योहार सुख-समृद्धि का प्रतीक है। उन्होंने उम्मीद जताई कि माता लक्ष्मी की कृपा से जम्मू-कश्मीर में खुशहाली और शांति का माहौल बने। साथ ही उन्होंने राज्य के लोगों से अनुरोध किया कि वे दिवाली को पारंपरिक रूप से मनाएं और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भावना का संदेश फैलाएं। उनका मानना है कि इस तरह के त्योहार समुदायों के बीच एकता और मेलजोल बढ़ाने में सहायक होते हैं और इससे लोगों में सकारात्मकता का संचार होता है।

इसके अतिरिक्त, फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की वर्तमान परिस्थितियों पर भी अपनी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राज्य की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, सरकार और स्थानीय प्रशासन को ज्यादा संवेदनशील और लोगों की जरूरतों के प्रति अधिक उत्तरदायी होना चाहिए। उनका मानना है कि विकास की प्रक्रिया में सबकी भागीदारी होनी चाहिए, जिससे जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों को समान अवसर और संसाधन मिल सकें।

फारूक अब्दुल्ला के इस बयान को जम्मू-कश्मीर में उनकी लोकप्रियता और राज्य के विकास में उनकी रुचि का प्रतीक माना जा रहा है। उनके द्वारा दरबार मू की परंपरा को पुनर्स्थापित करने और आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने के इस संकल्प को जनता से व्यापक समर्थन मिलने की संभावना है।

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