सीएए, भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन है: यूएस

सीएए, भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन है: यूएस

अमेरिकी संसद की स्वतंत्र अनुसंधान विंग की रिपोर्ट में नागरिकता कानून (CAA) को लेकर बड़ा दावा किया गया है। इसमें कहा गया है कि CAA के प्रावधान भारतीय संविधान के उल्लंघन में हो सकते हैं और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के साथ मिलकर CAA भारतीय मुस्लिमों के अधिकारों को खतरे में डाल सकता है। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (CRS) ने यह रिपोर्ट तैयार की है। CRS सांसदों के लिए रिपोर्ट तैयार करती है। यह अमेरिकी संसद की आधिकारिक रिपोर्ट नहीं होती।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीएए को “भाजपा ने चुनाव अभियान से पहले लागू किया।” यह “बड़े पैमाने पर राजनीति से प्रेरित” है। इस बारे में आलोचकों का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “…सीएए को केवल सरकार से ‘अनुमोदित’ धर्मों के लोगों की रक्षा के लिए डिज़ाइन किया गया है, दूसरों (मुस्लिमों) के पास इसमें कोई जगह नहीं है। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को कमजोर करेगा। एक वरिष्ठ पर्यवेक्षक के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मोदी-भाजपा के बहुसंख्यकों को आगे बढ़ाने और दूसरों (मुस्लिमों) को दोयम दर्जा देने की कोशिश है।’

बता दें कि, मोदी सरकार ने सीएए से संबंधित सभी देशी-विदेशी आलोचनाओं को खारिज कर दिया है। मोदी सरकार का कहना है कि सीएए का उद्देश्य मुख्य रूप से प्रताड़ित हिन्दुओं को नागरिकता देना है। एक बयान में, केंद्र ने आश्वासन दिया था कि इस कानून की वजह से देश का कोई भी नागरिक अपनी नागरिकता नहीं खोएगा। हालांकि भारतीय विपक्षी दल भी सीएए के प्रावधानों पर शक जता चुके हैं। तमाम जन संगठनों ने मांग की है कि मोदी सरकार इसमें हर धर्म के नागरिक को शामिल करे, तभी उसका सीएए कानून सही मायना जाएगा।

इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी CAA पर जिंता जताई थी और कहा था कि इसे कैसे लागू किया जाता है, अमेरिका इस पर करीबी नजर रखे हुए है। भारत ने अमेरिका के इस बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि CAA पर अमेरिका की टिप्पणी गलत, अनुचित और अनपेक्षित है। उसने कहा था कि यह भारत का आंतरिक मामला है और CAA नागरिकता देने वाला कानून है, छीनने वाला नहीं।

CAA विवादों में क्यों?
CAA के दायरे से मुस्लिमों को बाहर रखने पर काफी विवाद है। आलोचक इसे असंवैधानिक बताते हैं क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। केवल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए पीड़ितों को ही नागरिकता देने पर भी सवाल उठ रहे हैं। श्रीलंका में भी तमिल हिंदुओं को यातनाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन वो इसमें शामिल नहीं। डर है कि सीमावर्ती राज्यों में इसके जरिए घुसपैठिये नागरिकता पा लेंगे।

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