2024 लोकसभा चुनाव के लिए पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी की नज़र

2024 लोकसभा चुनाव के लिए पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी की नज़र

2024 लोकसभा चुनाव जैसे जैसे नज़दीक आता जा रहा है, सियासी पार्टियों के अंदर काफ़ी हलचल देखने को मिल रही है। सभी पार्टियां अपना कुनबा बढ़ाने में लगी हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में कौन बाज़ी मरेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि 2024 लोकसभा चुनाव 2019 और 2014 की तरह बीजेपी के लिए आसान नहीं होने वाला है।

विपक्षी पार्टियों ने जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) आरजेडी, जनतादल (यू) झामूमो, डीएमके, लेफ्ट, आप जैसी मुख्य पार्टियां शामिल हैं ने पटना और बेंगलुरु में जो एकता दिखाई है उसने बीजेपी को इस बात पर विवश कर दिया कि वह एनडीए को दोबारा एकजुट करे। विपक्षी एकता को देखते हुए बीजेपी ने भी अपने सहयोगी दलों को 18 जुलाई को दिल्ली में जमा किया।

बीजेपी की पूरी कोशिश है कि लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर रिकॉर्ड कायम कर ले। पार्टी ने अपने दो कार्यकालों में राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर अपने दो एजेंडे पूरे कर लिए हैं। अब पार्टी की तैयारी है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाया जाए।

बीजेपी को अच्छी तरह मालूम है कि सिर्फ कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर ही लोकसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता है इसके लिए जातीय और धार्मिक समीकरणों को भी पाले में बैठाना होगा। पार्टी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ही ओबीसी का एक तगड़ा समीकरण तैयार किया है जिसमें गैर यादव जातियां शामिल हैं।

बीजेपी ने मुसलमानों को लेकर भी एक अपना रुख आश्चर्यजनक तरीके से बदला है। जहां अभी तक सभी पार्टियां हिंदुओं में पिछड़ी, एससी और एसटी जातियों का मुद्दा उठाती रही हैं वहीं बीजेपी ने पसमांदा यानी पिछड़े हुए मुसलमानों का मुद्दा उठाया है। पसमांदा समाज के मुसलमानों को मुख्य धारा में लाने की बात सबसे पहले पीएम मोदी ने ही कही थी। इसके बाद बीजेपी ने आक्रामक तरीके से इस पर काम शुरू कर दिया है।

ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ मिलाकर बीजेपी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के वोटों का भी समीकरण बदल दिया है, क्योंकि पूर्वांचल में विशेष रूप से घोसी, मऊ के मुस्लिम वोटरों पर अपना असर रखने वाले बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायक हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में मोहसिन रज़ा की जगह दानिश अंसारी को अल्पसंख्यक मंत्री बनाने के पीछे भी यही मंशा थी।

इसी बीच बीजेपी ने रविवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया. पार्टी की नई कार्यकारिणी में कई नए चेहरों को जगह दी गई है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को खास तरजीह मिली है।

पार्टी की नई लिस्ट में उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन), राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री और राष्ट्रीय सचिव है. इसमें विधान परिषद सदस्य और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को बीजेपी उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। तारिक मंसूर पसमांद समाज से आते हैं। बीजेपी की कार्यकारिणी में अब्दुल्ला कुट्टी को भी जगह दी गई है जो केरल से हैं। तारिक मंसूर और कुट्टी दोनों को ही बीजेपी के नए मुस्लिम चेहरे हैं।

कार्यकारिणी की नई लिस्ट में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मुसलमान चेहरा तारिक़ मंसूर का ही है। मंसूर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। तारिक मंसूर एक पसमांदा मुसलमान हैं।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, ‘ऐसा फिलहाल तो नहीं लग रहा कि तारिक मंसूर को कार्यकारिणी के सदस्य में शामिल करके बीजेपी मुसलमानों के एक बड़े तबके को अपनी तरफ कर पाएगी। हालांकि इसे एक अच्छी शुरुआत की तरह जरूर देखा जा सकता है। प्रमोद जोशी के मुताबिक यह कदम बीजेपी के सोशल इंजीनियरिंग की मुहिम जरूर है।

जोशी का मानना है कि बीजेपी की राजनीति में अब तक मुसलमान पूरी तरह से नजरअंदाज होते रहे हैं. लेकिन इस नियुक्ति के बाद ऐसा लग रहा है कि पार्टी धीरे-धीरे मुसलमानों के बीच भी अपने पकड़ बनाना चाहती है। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मुसलमान के साथ की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि बीजेपी के खिलाफ 26 पार्टियों का जो गठबंधन बना है वह काफी मजबूती के साथ तैयार हो कर आ रहा है।

पूर्व सासंद अली अनवर ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा, ‘तारिक मंसूर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने की पीछे मुसलमानों वोटों में बांट-बखरा करने की मंशा है. ये सिर्फ सेंध लगाने की कोशिश है। चार राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और प्रधानमंत्री जी भी कई बार कई मंचों से पसमांदा की रट लगाते रहते हैं, तो यह सही समय पर सही संकेत है।

पूर्व सासंद ने आगे कहा, ‘तारिक मंसूर साहब की जो विरासत है, वह रईसों वाली है. हां, संघ और बीजेपी की लाइन को ये आंख मूंदकर फॉलो करते रहे हैं, यही कारण है कि इनको एक साल का एक्सटेंशन भी मिला, फिर एमएलसी भी बने और अब बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. एक्सटेंशन के दौरान ही ये पसमांदा समाज की समस्याओं पर लेख भी लिखने लगें।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ” चुनाव से पहले यह बीजेपी का राष्ट्रीय छवि दिखाने का प्रयास है. वो दक्षिण में अपना पकड़ बनाना चाहती है. बीजेपी के लिए केरल एक नया क्षेत्र है. कुट्टी के साथ ही एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किए गए हैं.’

वहीं बीबीसी की ही रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषण कहती हैं, ‘केरल के नजरिए से देखें तो कुट्टी को शामिल जरूर किया गया है लेकिन यह भी तारीक मंसूर की तरह प्रतीक मात्र ही है’ बीजेपी पहले भी ऐसे प्रयोग कर चुकी है। पार्टी ने इससे पहले मुख़्तार अब्बास नक़वी को भी मुसलमानों के प्रतिनिधि के तौर पर उतारा था। उनसे भी उम्मीद की जा रही थी कि वो उत्तर प्रदेश में शिया वोट लाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया था।

भारत में मुसलमानों की कुल आबादी 15 फीसदी है और इन 15 फीसदी मुसलमानों में 80 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। पसमांदा मुसलमान का मतलब है वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इस श्रेणी में दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं। पसमांदा मुसलमान मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं। अब उनके कई आंदोलन हो चुके हैं। पसमांदा शब्द उर्दू-फारसी का है और इसका मतलब होता है पीछे छूटे या नीचे धकेल दिए गए लोग।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

 

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