इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जामा मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ माना
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को संभल की जामा मस्जिद को “विवादित स्थल” के रूप में संदर्भित करने पर सहमति जताई। यह फैसला तब आया जब मस्जिद की प्रशासनिक समिति ने मुगल काल की इस इमारत को रंगने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी। अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका पर स्टेनोग्राफर को निर्देश दिया कि वह शाही मस्जिद को “विवादित ढांचा” के रूप में दर्ज करे। इस मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च को होगी, जब पुरातत्व विभाग अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करेगा।
यह मामला तब कानूनी विवाद बना जब एक शिकायत में आरोप लगाया गया कि 16वीं सदी में मुगल बादशाह बाबर ने हरी हर मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया था। अदालत के आदेश पर कराए गए एक सर्वे के दौरान पिछले साल नवंबर में संभल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई थी।
मस्जिद समिति ने हाईकोर्ट में मस्जिद को पेंट करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी, जिस पर पुरातत्व विभाग ने तर्क दिया कि फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है। अदालत में हिंदू पक्ष के वकील हरी शंकर जैन ने मस्जिद समिति के 1927 के समझौते के तहत मस्जिद के रखरखाव के दावे को चुनौती देते हुए कहा कि इसकी जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है।
सुनवाई के दौरान, एडवोकेट जैन ने अदालत से आग्रह किया कि मस्जिद को “विवादित ढांचा” कहा जाए, जिस पर अदालत ने सहमति व्यक्त की। इसके बाद अदालत ने स्टेनोग्राफर को मस्जिद के लिए “विवादित ढांचा” शब्द का उपयोग करने का निर्देश दिया। 28 फरवरी को, अदालत ने पुरातत्व विभाग को आदेश दिया कि वह मस्जिद की सफाई का काम करे, जिसमें धूल हटाना और मस्जिद के अंदर व बाहर उगी झाड़ियों और घास की सफाई शामिल है।
एडवोकेट जैन ने अपने हलफनामे में दावा किया कि मस्जिद समिति ने एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की अनुमति के बिना इमारत में महत्वपूर्ण बदलाव किए, दीवारों और स्तंभों पर रंग कर हिंदू चिह्नों और निशानों को छिपाने की कोशिश की।