किसी क़ानून को चुनौती देना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के समान: मुख्य न्यायाधीश

किसी क़ानून को चुनौती देना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के समान: मुख्य न्यायाधीश

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने मंगलवार को कहा कि जब नागरिक किसी कानून या प्रशासनिक कार्रवाई को चुनौती देते हैं, तो वे संविधान द्वारा परिकल्पित लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस समारोह के दौरान भाषण देते हुए, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा, “हम भारत के लोग संविधान को जीवन का एक तरीका मानते हैं।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान ने न्यायपालिका को इस तरह से तैयार किया है कि उसके फैसले निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हों। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश जनता की राय मांगते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनके फैसले निष्पक्ष हों, किसी भी इच्छा या बाहरी दबाव से मुक्त हों, और पूरी तरह संविधान और कानूनों के तहत निर्देशित हों।

मुख्य न्यायाधीश ने कई मुद्दों पर चिंता व्यक्त की, जिनमें मामलों का अंबार, न्याय में देरी, कानूनी प्रक्रिया की लागत, न्याय तक पहुंच में आसानी की कमी और विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या शामिल हैं।

उन्होंने कहा, “संविधान ने संवैधानिक न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा का अधिकार दिया है। यह हमें विधायिका, कार्यकारी नीतियों और प्रशासनिक व अर्ध-न्यायिक फैसलों को रद्द करने में सक्षम बनाता है। हम जनहित याचिकाएं (PIL) दायर करते हैं, स्वतः संज्ञान लेते हैं, और एमिकस क्यूरी की नियुक्ति करते हैं, जो हमारे निर्णय लेने में मदद करते हैं।” साथ ही, उन्होंने ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के लिए 7,200 करोड़ रुपये का बजट मंजूर करने पर केंद्र सरकार का धन्यवाद दिया।

गौरतलब है कि हर साल 26 नवंबर को भारत का “संविधान दिवस” मनाया जाता है। इसी दिन 1949 में भारत की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से संविधान को अपनाया था, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

संविधान दिवस को 2015 में केंद्र सरकार ने औपचारिक मान्यता दी थी। इसका उद्देश्य संविधान के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना, नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना और लोकतंत्र, न्याय, समानता और स्वतंत्रता जैसे उन मूल्यों पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करना है, जिनकी संविधान गारंटी देता है।

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