भारत को नज़रअंदाज़ करना बाइडन के लिए नहीं होगा आसान, चीन बना बड़ी वजह

20 जनवरी को व्हाइट हाउस से डोनाल्ड ट्रम्प की विदाई के साथ ही उनकी जगह डेमोक्रेट्स राष्ट्रपति जो बाइडन होंगे।
20 जनवरी को अमेरिका में सत्ता का चेहरा बदल जाएगा। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होता है तो पूरी दुनिया की नजर होती है कि अगला प्रशासन किस तरह से आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आगे बढ़ेगा। आमतौर पर यह कहा जाता है कि यूएस में सत्ता किसी की भी हो उनके लिए अमेरिका फर्स्ट की नीति सर्वोच्च होती है। कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति हो उसके लिए अमेरिकी का हित कहां सधता है वो ही मुख्य होता है और उसके हिसाब से दूसरे देशों के संबंध में फैसले किए जाते हैं। अब सवाल यह है कि ट्रम्प के समय जिस तरह से अमेरिका और भारत के रिश्ते में गर्मी आई थी क्या वो आगे भी जारी रहेगा।

भारत- अमेरिकी संबंध को प्रभावित करेंगे आर्थिक रिश्ते
जानकार कहते हैं कि मोटे तौर पर अमेरिका के सामने कमोबेश आर्थिक मोर्चे पर वही चुनौतियां है जो दूसरे मुल्कों के साथ है, अगर बात कृषि क्षेत्र की करें तो अमेरिका चाहता है कि सब्सिडी का मुद्दा विकासशील देशों के पक्ष में ना हो। दरअसल अमेरिका को इस बात का डरह है कि अगर विकासशील देश अपने किसानों को सब्सिडी देंगें तो उसके कृषि उत्पादों के निर्यात पर असर पड़ेगा और इस संबंध में जो बिडेन का रिश्ता भारत के साथ ट्रंप शासन की तरह रहेगा। लेकिन जिस तरह से चीन के साथ तनातनी है उसके चलते कृषि मामले में भारत के लिए रुख नरम हो सकता है।

चीन , भारत और अमेरिका के बीच
इसके साथ ही सुरक्षा के मुद्दे पर और चीन की विस्तारवादी नीति रोकने के लिए भारत का साथ अमेरिका के लिए जरूरी है जैसे दक्षिण चीन सागर में शी जिनपिंग आक्रामक रुख अपनाते रहे हैं उसे देखते हुए अमेरिका के लिए जरूरी है वो जापान के साथ साथ भारत के साथ बेहतर संबंध स्थापित करे ताकि हिंद महासागर में चीन के आक्रामक रवैये को रोका जा सके। क्योंकि हिंद महासागर में चीन जितना कमजोर होगा उसका असर दक्षिण चीन सागर पर दिखाई देगा। इसके साथ ही उत्तर कोरिया के साथ चीन की गलबगहियां जितनी ज्यादा बढ़ेगी उसकी वजह से भारत और अमेरिका के रिश्ते में और मजबूती आएगी।

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