दिल्ली दंगों का मक़सद मुसलमानों को डराना था: दिल्ली पुलिस
नई दिल्ली: पूर्वी दिल्ली में दंगे मुसलमानों के मन में डर पैदा करने और शहर को अशांत बनाने की एक व्यापक साजिश और योजना का हिस्सा थे। और यही काम बाबरी मस्जिद, तीन तलाक, कश्मीर और सीएए के मुद्दे पे किया गया। एनआरसी और कश्मीर के मुद्दे पर सनसनी फैलाकर मुसलमानों के दिल में डर और हिरास पैदा किया गया। यह बात आज दिल्ली पुलिस के विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मुरदल और रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने अभियोजन पक्ष की आगे की दलीलों की सुनवाई मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि चार्जशीट में सभी आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को दोहराया जा रहा है। उमर खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि आरोप बार-बार लगाए जा रहे हैं और आरोपियों पर ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं जिनका उनसे कोई संबंध नहीं था।
उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक ऐसा कोई भी सबूत सामने नहीं आया है जो यह प्रमाणित कर सके कि उमर खालिद हिंसा के वक़्त किसी भी स्थान पर मौजूद थे। उनके खिलाफ केवल मन गढंत और फ़र्ज़ी बयान दर्ज किए गए। जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि हम समझ रहे हैं कि आप क्या कह रहे हैं लेकिन साजिश में ख़ुद मौजूद होना जरूरी नहीं। बहस की शुरुआत में अमित प्रसाद ने कहा कि दंगे दो चरणों में हुए। पहले चरण को दिसंबर 2019 की हिंसा से संबंधित कहा जा सकता है और दूसरा चरण फरवरी 2020 की हिंसक घटनाओं से संबंधित था।
उनका तर्क था कि पहला चरण विफल रहा, इसलिए दूसरे चरण में, साजिशकर्ताओं ने व्हाट्सएप चैट्स व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से बड़े पैमाने पर अपनी योजना को अंजाम देने की कोशिश की। यह तब की बात है जब 4 दिसंबर 2019 को CAB को संसद में कैबिनेट की मंजूरी दी गई थी। अमित प्रसाद ने आगे तर्क दिया कि UAH, DPSG, MSJ और अन्य व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए थे। DPSG ग्रुप का गठन राहुल रॉय ने किया था। उमर खालिद और अन्य आरोपी इस समूह का हिस्सा थे।
जस्टिस सिद्धार्थ ने पूछा कि क्या राहुल रॉय को आरोपी बनाया गया है। एसपीपी ने जवाब दिया कि चार्जशीट में कई अन्य आरोपियों के भी नाम दर्ज हैं। उन्होंने तर्क दिया कि ज्यादातर आरोपी व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए एक-दूसरे के संपर्क में आए, जबकि इन समूहों का इस्तेमाल चक्का जामऔर विरोध प्रदर्शन की अपील के लिए किया जा रहा था।