जब इंडियन एक्सप्रेस जैसा अखबार चंद सिक्को के लिए बिक जाता है तो ऐसी गलतियां होती ही है
यह जो इमेज आप देख रहे हैं यह आज इंडियन एक्सप्रेस के फ्रंट पेज पर प्रकाशित विज्ञापन की है …..यह नए किस्म का विज्ञापन है आजकल बड़े बड़े मीडिया संस्थानो ने सरकारो के लिए एक नए किस्म का पेड प्रचार करना शुरू कर दिया है जिसकी आम विज्ञापन से ज्यादा मोटी कीमत ली जाती है,
अखबारी भाषा में इसे ‘एडवरटोरियल’ कहा जाता है यानी अखबार अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए यह बताता है कि यह जो भी सामग्री इस ‘एडवरटोरियल’ रूपी विज्ञापन में दिखाई गई है उसे संपादक द्वारा जाँचा परखा गया है और वह सही है,
इस इमेज को आज इंडियन एक्सप्रेस ने फ्रंट पेज पर एडवरटोरियल बता कर छापा है इसमे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के विकास कार्यों के बारे में बताया गया है।…….गड़बड़ यह हुई है कि इस एडवरटोरियल में नीचे की तरफ यूपी में योगी सरकार द्वारा किये गए विकास को दिखाने के लिए जो फ्लाईओवर की तस्वीर इस्तेमाल की गई है। वह फ्लाईओवर उत्तर प्रदेश में न होकर कलकत्ता में है इस विज्ञापन में पीली टैक्सी साफ दिख रही है जो कलकत्ता में ही चलती है ओर जैसा कि आप जानते हैं कि जहाँ कलकत्ता पश्चिम बंगाल में आता है जहाँ कई वर्षों से ममता बनर्जी की सरकार है,
यानी यह एक तरह से पाठकों को धोखा दिया जा रहा है कि विकास कही और हुआ है और आप उसे उत्तर प्रदेश में विकास के नाम पर दिखा रहे हैं, एडवरटोरियल होने के कारण इस पूरी सामग्री की जिम्मेदारी संबंंधित अखबार की है।
उत्तर प्रदेश भाजपा का कहना है कि यह हमारी गलती नही है यह तस्वीर हमने नही दी है इस बात के सामने आने के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने अपने पाठकों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और डिजिटल एडिशन में इस तस्वीर को हटा दिया है लेकिन दिक्कत प्रिंट एडिशन की है वह तो लाखो की संख्या में बंट चुका है
यह पूरा प्रकरण इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रतिष्ठित अखबार के।लिए एक काला धब्बा है और अब हम जैसे सुधि पाठकों को इससे यह भी समझ।लेना चाहिए कि इन नामचीन अखबारों की क्रेडिबिलिटी कितनी है ! ओर किस तरह से झूठा नैरेटिव पेश किया जाता है
गिरीश मालवीय की फेसबुक वॉल से
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।