पाकिस्तान, शिया समुदाय के खिलाफ नहीं थम रही हिंसा
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक शिया मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जारी नरसंहार थमने का नाम नहीं ले रहा है। शिया समुदाय का कत्लेआम लगातार जारी है। शिया समुदाय खुद को पाकिस्तान में असुरक्षित महसूस कर रहा है।
शुक्रवार को ही एक बार फिर पेशावर में जुमे की नमाज के बीच पाकिस्तान के सबसे बड़े मुस्लिम अल्पसंख्यक शिया समुदाय को निशाना बनाते हुए एक आत्मघाती हमलावर ने 10 वर्ष से कम उम्र के 7 बच्चों समेत 62 लोगों की जान ले ली, जबकि इस हमले में 194 लोग घायल हुए थे।
पाकिस्तान में एक लंबी अवधि से जनगणना नहीं हुई है फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि यहां शिया समुदाय की संख्या 16 मिलियन के आसपास है। पाकिस्तान की कुल आबादी का 15% माना जाने वाला शिया समुदाय देश के हर कोने में मौजूद है। पाकिस्तान के गठन के समय से ही शिया मुसलमान, बहुसंख्यक समुदाय के निशाने पर रहे हैं।
इस्लाम खबर की रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक में देश के इस्लामीकरण के बाद से हालिया वर्षों तक, पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटना में बेतहाशा वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार 2012 से लेकर मई 2015 तक ही बम धमाकों, टारगेट किलिंग एवं अन्य माध्यमों से कम से कम 1900 शिया मुसलमानों को मार दिया गया था।
शिया समुदाय के खिलाफ होने वाली हिंसा में हजारों पुरुष , औरतों और बच्चों की जाने जा चुकी हैं। इस समुदाय को सत्ता में भागीदारी ट्ज सरकारी विभागों में उनकी संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व भी हासिल नहीं है, जबकि इस समुदाय के कुलीन वर्ग तथा डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, कारोबारी एवं अन्य गणमान्य लोगों को आतंकवादियों की ओर से टारगेट किलिंग का निशाना बनाया जाता रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार शिया समुदाय अधिकतर लश्कर ए झांगवी और सिपाही सहाबा जैसे आतंकी संगठनों के निशाने पर रहा है जो अलकायदा और तालिबान से संबंधित संगठन हैं।
कराची, लाहौर, पाराचिनार, गिलगित बल्तिस्तान और अधिकृत कश्मीर तक शिया समुदाय आतंकी संगठनों के निशाने पर रहता है। शिया समुदाय कहता रहा है कि उनकी धार्मिक आजादी छीनी जा रही है। 2020 में पंजाब एसेंबली से एक बिल पास किया गया जिसमें सुन्नी संप्रदाय के अनुसार कानूनों को मंजूरी दी गई जबकि शिया समुदाय की आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया।
गत शुक्रवार को हुए बम धमाके के संबंध में डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा कि सत्ता में बैठे लोगों के आदेश के बावजूद इस हमले ने राष्ट्रीय सुरक्षा संस्था को धोखा दिया। इस हमले को रोकने के लिए कोई तैयारी ना करना यह आभास दिलाता है कि आतंकवादी गतिविधियों का दायरा धीरे धीरे और फैलता जा रहा है।
टीटीपी या इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान या इनके किसी भी सहयोगी संगठन के रूप में सशस्त्र गतिविधियां और आतंकी कार्यवाही एक राष्ट्रीय मुद्दा है। शिया समुदाय के खिलाफ नफरत रखने वाले यह संगठन अंधाधुंध कार्यवाही कर रहे हैं। शिया समुदाय की इबादत गाहों और इमामबारगाह को 1980 के दशक से लेकर अब तक लगातार बर्बर हमलों का निशाना बनाया गया है।
सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान सरकार ने शिया समुदाय के इबादत केंद्रों एवं इमामबार गाहों या मस्जिदों को सुरक्षा क्यों उपलब्ध नहीं कराई ? क्यों उनकी सुरक्षा के ठोस उपाय नहीं किए गए ? खासकर शुक्रवार के दिन जुमे की नमाज के समय जब आतंकवादियों के हमलों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे सभी अवसरों पर शिया समुदाय की सुरक्षा क्यों सुनिश्चित नहीं की जाती जब आतंकवादी भारी संख्या में लोगों के जमा होने का इंतजार करते हैं ताकि हमला कर, अधिक से अधिक लोगों की जान ले सकें।