धर्म , धन और सियासत का कॉकटेल और महंत की मौत

धर्म , धन और सियासत का कॉकटेल और महंत की मौत महंत नरेंद्र गिरि को उनके गांव वाले बचपन में बुद्धू कहते थे क्योंकि वह कम बोलते थे।

धर्म की राह में सांसारिक काम और घर परिवार को छोड़कर बुद्धू कहलाने वाले इस बालक ने वह स्थान हासिल किया कि वह महंत नरेंद्र गिरि के नाम से पहचाने जाने लगे।

बचपन से ही कम बोलने वाले नरेंद्र गिरी का मन सांसारिक कामों में कम ही लगता था लेकिन गांव आने जाने वाले साधु-संतों के साथ वह घुलमिल जाते थे। लोग ताने देते थे कि बुद्धू कुछ नहीं कर सकता।

कुछ करने की तमन्ना थी या इस तंज़ का दर्द , कि बुद्ध ने घर छोड़ दिया। शायद वह अपने आपको स्वामी विवेकानंद समझता था क्योंकि उनका भी असली नाम नरेंद्र नाथ था।

सनातनी मठ परंपरा में महंत नरेंद्र गिरी ने वह मकाम हासिल किया कि हालात बदले और वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बन गए। भक्तों की लाइनें लंबी होती गई। नेता आशीर्वाद लेने आने लगे। इलाहाबाद में कहा जाने लगा के महंत जिस पर हाथ रख देते हैं उसके दिन संवर जाते हैं।

कहने को तो महंत नरेंद्र गिरि संत थे लेकिन उन्हें आधुनिक सुख-सुविधाओं से परहेज भी नहीं था। वह कई बार आश्रम में रुकने के बजाय होटल में रुकना पसंद करते थे तथा परिस्थितियों के हिसाब से फैसला लेते थे। सत्ता के करीब रहते थे। दूसरों को सीधे राह पर चलने के लिए मजबूर कर सकते थे। उनमें हनक थी, ठसक थी और राम मंदिर को लेकर बेहद मुखर थे।

सत्ताधारी उनके और वह सत्ता के करीब थे। लेकिन सोमवार शाम को उनका शव बाघमबारी गद्दी के गेस्ट हाउस में फंदे से लटकता हुआ मिला। साथ में एक सुसाइड नोट भी था जिसमें उनके शिष्य आनंद गिरि को लेकर आरोप लगाए गए थे। लेकिन सवाल यह है कि अगर साधु संत और महात्मा लोग भी ऐसा करने लगे तो आम आदमी क्या करें ?

पहले कहा जा रहा था कि उन्हें वीडियो के माध्यम से ब्लैकमेल किया जाता था। सुसाइड नोट में लिखा गया है कि उन्हें पता चला था कि आनंद गिरी लड़कियों के साथ गलत काम करते हुए उनका वीडियो वायरल करने वाला है और वह बदनामी के डर से अपनी जान दे रहे हैं। किस किस को सफाई देंगे ?

इसमें स्पष्ट है कि आनंद गिरी ने धमकी नहीं दे थी। महेंद्र गिरी को किसी के माध्यम से पता चला था। उन्होंने अपनी मौत के लिए आनंद के साथ साथ लेटे हनुमान मंदिर के पुजारी तिवारी और उसके बेटे को जिम्मेदार बताया है।

हत्या के मामले में गिरफ्तार आनंद गिरी का कहना है कि वह 1200 किलोमीटर दूर बैठकर किसी को आत्महत्या के लिए कैसे मजबूर कर सकता है ? महंत की हत्या की गई है। पहले उसे नरेंद्र गिरी से दूर किया गया बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

यह तो पुलिस जांच के बाद ही समझ में आएगा कि कांड की सच्चाई क्या है लेकिन गुरु शिष्य के बीच हुए विवाद और संदेह को यह बातें जरूर बल देते हैं।

आनंद गिरी नाम से फेसबुक पर बहुत सी प्रोफाइल है। 19 सितंबर को एक पोस्ट लिखी गई है कि आपकी संपत्ति के उत्तराधिकारी कई लोग हो सकते हैं। जबकि 18 सितंबर की पोस्ट पर लिखा गया है कि “जब प्रतिष्ठा बढ़ती है तब टैक्स चुकाना पड़ता है इसलिए निंदा से घबराना नहीं नहीं चाहिए। यह आपकी प्रगति का प्रतीक है।

यह किसके बारे में लिखा गया है विश्वास के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन अगर उनके जीवन को देखा जाए तो पता लगे कि उनका विवादों से पुराना नाता है। उनकी चाल तेज है। नरेंद्र प्रयागराज के हनुमान जी मंदिर के मुख्य पुजारी, बाघंबरी के मठाधीश और उन्हें बड़े महंत नरेंद्र गिरि का आशीर्वाद प्राप्त था तथा बड़े महंत को उन पर अटूट विश्वास भी था।

आनंद गिरि को ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं के साथ गलत आचरण करने के आरोप में पकड़ा गया था। महंत नरेंद्र गिरि ने कहा था कि सनातन परंपरा के अनुसार पीठ पर हहथ फेरने को गलत आचरण के रूप में चुना गया है। आनंद ने कोई गलती नहीं की।

आनंद गिरि ने ऑस्ट्रेलिया से रिहा होने के बाद कहा था कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता। 2018 में हुए कुंभ मेले तक दोनों गुरु शिष्य के संबंध सही थे।

नरेंद्र गिरी की अनुपस्थिति में आनंद गिरी मठ का पूरा कामकाज देखता था। 2019 के आसपास दोनों में दरारें पड़ने लगी। आनंद का क़द बढ़ता जा रहा था। छोटा महंत तो उसे पहले ही कहा जाने लगा था लेकिन उसकी चाल तेज हो गई थी।

नेता और बड़े लोगों को दर्शन कराने का काम नरेंद्र गिरी करते थे लेकिन आनंद गिरी ने इसे भी अपने हाथ में ले लिया। बड़े नेताओं और राष्ट्रपति के साथ उसकी तस्वीरें इस बात की पुष्टि भी करते हैं।

गद्दी से जुड़े एक व्यक्ति के अनुसार बड़ी हस्तियां नरेंद्र गिरी का आशीर्वाद लेने आती थी लेकिन आनंद गिरि के मैनेजर इस तरह फोटो लेते थे कि लगे आनंद गिरि से ही मुलाकात हुई है और उन्होंने ही दर्शन कराएं हैं। यह सत्ता के करीब आने और दिखने का एक बड़ा माध्यम होता है। दूसरों पर रौब पड़ता है और यह बात नरेंद्र की टीम को नागवार गुजरती थे। वह आनंद गिरि को चुनौती के रूप में देखने लगे थे।

बड़ा बनने का टकराव वैसा ही होता है जैसे सांसारिक जीवन में होता है। आनंद गिरी और नरेंद्र गिरी के बीच भी यही हो रहा था। 2019 के कुंभ से ही बात बिगड़ने लगी। आनंद गिरि का कद बढ़ता जा रहा था। नरेंद्र गिरी के साथ रहने वाले साबित करने में लगे थे कि बड़े महंत अब छोटे होते जा रहे हैं लेकिन यह लड़ाई अभी तक पर्दे के पीछे थी।

2019 के बाद आनंद गिरि संतों की बैठक लेने लगे। नरेंद्र को यह बात भली नहीं लगी। दोनों में मनमुटाव और बढ़ा। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ। हालात ऐसे बने कि आनंद गिरि को लेटे हनुमान जी के मंदिर के मुख्य पुजारी और बाघमबारी गद्दी के महंत पद से हटा दिया गया। उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे।

कहा गया कि आंनद गिरी हरिद्वार में आश्रम बनवा रहा था जिसे नरेंद्र गिरि ने अपने रौब और पहुँच से सील करा दिया। बाद में पंचायती राज अखाडा से भी निकाल दिया गया। आनंद गिरि ने आरोप लगाया कि गुरु जी संपत्तियां बेचकर अपने परिवार को पैसा भेज रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को एक पत्र भी भेजा। नरेंद्र गिरी खेमा भी यही आरोप लगाता रहा।

बात बढ़ने के बाद ही बाघमबारी गद्दी की फजीहत बढ़ती जा रही थी जो चाहने वालों को नागवार गुजर रही थी। ऐसे में सपा नेता इंदु प्रकाश , बीजेपी नेता सुशील मिश्रा और पुलिस अधिकारी ओपी पांडे की एंट्री होती है।

इंदु प्रकाश दर्जा प्राप्त मंत्री रह चुके थे। गुरु शिष्य में समझौता कराया गया। अधिकारी के आवास पर वीडियो भी बनाया गया जिसमें आनंद गुरु के चरणों में बैठकर माफी मांग रहा था। कहने को मामला सुलझ तो गया था लेकिन खटास कम नहीं हुई थी। नरेंद्र गिरी ने आनंद गिरी को उत्तराधिकार सौंपने वाली वसीयत रद्द कर दी। आनंद गिरी को हरिद्वार भेज दिया गया ।

इतना रौब और पहुंच रखने वाला आदमी परेशान क्यों था? बात क्या थी जो खाये जा रही थी ? ऐसा क्या था जिससे महंत नरेंद्र पर दाग लग जाता है और मिट नहीं पाता ? वह अपनी हनक से कई बार बड़े लोगों को भी झुका चुके थे। विवादों में भी आते रहे थे।

2004 में इलाहाबाद रेंज के डीआईजी आरएन सिंह लेटे हनुमान जी के सामने गरीबों को भोजन कराते थे। वह वहां परमानेंट जगह चाहते थे लेकिन नरेंद्र गिरी इसके लिए तैयार नहीं थे। एक दिन भरी दुपहरी में वह धरने पर बैठ गए अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। नरेंद्र गिरी ने उनको फोन लगा दिया और मुलायम ने आरएन सिंह को सस्पेंड कर दिया।

इसी तरह अखिलेश यादव के जमाने में भी नरेंद्र गिरी का सपा विधायक से विवाद हुआ तो अखिलेश को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा था। पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव आशीष गिरी की 2019 में संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। सभी शहर भर में इसे हत्या बता रहे थे लेकिन इसे आत्महत्या का मामला बताकर मामला रफा-दफा कर दिया गया।

दिल्ली एनसीआर में के बीयर बार और डिस्को चलने वाले सचिन दत्ता को नरेंद्र गिरी ने महामंडलेश्वर की उपाधि दी थी। दत्ता की ताजपोशी के समय अखिलेश सरकार के मंत्री शिवपाल यादव भी मौजूद थे।

ऐसी धमक और पहुंच रखने वाले नरेंद्र गिरी इस दुनिया में नहीं। उनके शिष्य आनंद गिरि भी गिरफ्तार हैं और दूसरे दो चेलों पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।

अन्य शिष्य निरंजनी अखाड़े और हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर की व्यवस्था संभालते हैं लेकिन सनातनी परंपरा में विश्वास करने वाले लोग निराश हैं। उन्हें इस बात का यकीन नहीं हो पा रहा है कि संसार से दूर रहने वाले लोग ब्लैकमेल कैसे हो सकते हैं। उन्हें एक वीडियो इतना कमजोर कैसे बना सकता है एक साधु, हानि-लाभ, जीवन -मरण, यश -अपयश विधि हाथ में विश्वास की सीख देने वाले लोग अगर ऐसे लड़ेंगे और ऐसे हार जाएंगे तो आम इंसान क्या करेगा ।

जी आलम

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