वियना वार्ता संवेदनशील मोड़ पर पहुंची, अमेरिका ने प्रतिबंधों में दी ढील

वियना वार्ता संवेदनशील मोड़ पर पहुंची, अमेरिका ने प्रतिबंधों में दी ढील

ईरान और दुनिया के कुछ देशों के बीच 2015 में हुए परमाणु समझौते से ट्रम्प प्रशासन के नेतृत्व वाले अमेरिका ने निकलकर इस समझौते को खतरे में डाल दिया था। अब इस परमाणु समझौते को बचाने के लिए वियना में वार्ता का दौर जारी है।

वियना में इस परमाणु समझौते को बचाने के लिए चल रही ईरान एवं विश्व शक्तियों के बीच वार्ता एक महत्वपूर्ण चरण में पहुंच चुकी है। ईरान कहता रहा है कि जब तक अमेरिका उसके खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म नहीं करता और अमेरिका की सत्यता स्थापित नहीं हो जाती तब तक इस समझौते को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है।

अब अमेरिकी प्रशासन ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम के लिए प्रतिबंधों में कुछ ढील देने की घोषणा की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ईरान की असैन्य परमाणु गतिविधियों के लिए कुछ प्रतिबंधों से छूट देने संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं।

याद रहे कि अमेरिका का उद्देश्य यह है कि इन प्रतिबंधों में ढील देकर ईरान को 2015 में हुए परमाणु समझौते के पालन के लिए मना ले। 2018 में अमेरिका के समझौते से पीछे हटने के बाद ईरान ने भी धीरे-धीरे समझौते का पालन करना कम कर दिया था। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि समझौते में वापसी के लिए समर्थन जुटाना जरूरी है। साथ ही उन्होंने इस बात से इनकार किया कि ईरान को कोई रियायत दे रहे हैं।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने ट्वीट करते हुए कहा है कि हम ने ईरान को प्रतिबंधों से राहत नहीं दी है। हम ईरान के जेसीपीओए के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं पर वापस लौटने तक ऐसा नहीं करेंगे। वहीँ ईरान ने सभी प्रतिबंधों से राहत की मांग करते हुए कहा है कि अमेरिका इस समझौते की शर्तों का सम्मान नहीं कर रहा है। वह पहले ही समझौते से अलग हो गया है।

याद रहे कि ट्रम्प प्रशासन ने ईरान के खिलाफ अधिकतम दबाव की रणनीति अपनाते हुए ईरान पर कई अमानवीय प्रतिबंध थोप दिए थे और परमाणु समझौते को अमेरिका के लिए अब तक का सबसे खराब समझौता बताया था। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान भी परमाणु समझौते में अमेरिका की वापसी को प्राथमिकता दी थी और वह अब भी इस समझौते में पलटने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि उनके सत्ता में आने के बाद भी अमेरिका ने इस दिशा में बहुत कम काम किया है।

ईरान कहता रहा है कि अगर अमेरिका परमाणु समझौते में लौटने के लिए गंभीर है तो उसे अपनी नियत और सत्यता साबित करना होगी।

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