फ़्रांस द्वारा फिलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा के बाद, दुनियाभर से तीखी और विविध प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। कई देशों ने इस क़दम का समर्थन किया है, वहीं अमेरिका और इज़रायल ने नाराज़गी जताई है।
आयरलैंड और स्पेन का स्वागत
आयरलैंड के विदेश मंत्री ने ग़ाज़ा में तत्काल संघर्ष-विराम की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि क़ेैदियों की रिहाई और मानवीय सहायता की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने फ्रांस द्वारा फ़िलिस्तीन को सितंबर में मान्यता देने की योजना का स्वागत किया और इसे दो-राष्ट्र समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम बताया।
स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज़ ने भी फ्रांस के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि स्पेन समेत कई यूरोपीय देशों के साथ मिलकर यह क़दम दो-राष्ट्र समाधान के समर्थन में उठाया गया है। उन्होंने कहा, “हमें एकजुट होकर काम करना होगा ताकि उस समाधान को बचाया जा सके जिसे नेतन्याहू बर्बाद करने की कोशिश कर रहा है। दो-राष्ट्र समाधान ही संकट का इकलौता हल है।”
कनाडा का समर्थन
फ्रांस के इस ऐलान के तुरंत बाद, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भी कहा कि उनका देश फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा, “कनाडा दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करता है, जो शांति और सुरक्षा की गारंटी दे सके। कार्नी ने बताया कि ओटावा इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से काम करेगा। साथ ही, उन्होंने ग़ाज़ा पट्टी में लगातार बिगड़ते मानवीय हालात को रोकने में इज़रायली सरकार की असफलता की कड़ी आलोचना की।
ब्रिटेन में भी दबाव
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन के स्वास्थ्य, न्याय और संस्कृति मंत्रालय के कई मंत्री प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर और विदेश मंत्री से मांग कर रहे हैं कि वे भी जल्द से जल्द फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू करें।
इज़रायल और अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया
फ्रांस के इस ऐलान पर इज़रायल और अमेरिका की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएँ आई हैं।इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा, “यह फ़ैसला आतंकवाद और हमास को इनाम देने जैसा है। इससे ईरान के प्रभाव वाला एक और गढ़ बनने का ख़तरा है, जैसा कि ग़ाज़ा में देखा गया है। फिलहाल फ़िलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देना शांति नहीं, बल्कि ‘इज़रायल’ की तबाही की जमीन तैयार करेगा।”
इज़रायली रक्षा मंत्री इस्राईल काट्ज़ ने भी इसे आतंकवाद के आगे झुकने और हमास को इनाम देने वाला क़दम बताया। उन्होंने दावा किया कि, “तेल-अवीव कभी भी फ़िलिस्तीनी राज्य के गठन की इजाज़त नहीं देगा जो इज़रायल की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए ख़तरा हो और यहूदियों के ऐतिहासिक अधिकारों को नुकसान पहुँचाए।
उनका कहना है कि, तेल-अवीव कभी भी फ़िलिस्तीनी राज्य के गठन की इजाज़त नहीं देगा, जबकि अधिकतर देश इज़रायल को ही अवैध राष्ट्र मानते हैं। इज़रायल को अवैध राष्ट्र मानने वालों का कहना है कि, फिलिस्तीनियों ने यहूदियों को पनाह थी और उन्हीं यहूदियों ने फिलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके उन्हें उनके मकानों से बे दख़ल कर दिया। यह भी वास्तविकता है कि, ग़ाज़ा नरसंहार और भुखमरी ने मानवता को झकझोर कर दिया है। इज़रायली अत्याचारों के विरुद्ध, इज़रायल समेत पूरी दुनियां में विरोध प्रदेशन हो रहा है।
अमेरिका ने भी जताई नाराज़गी
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि वह अगले हफ्ते होने वाली ‘दो-राष्ट्र समाधान’ बैठक में हिस्सा नहीं लेगा। अमेरिकी विदेश मंत्री ने फ्रांस के इस फ़ैसले को “लापरवाही भरा फैसला बताया और कहा कि यह सिर्फ़ हमास के नैरेटिव को मज़बूत करेगा और शांति प्रक्रिया को और जटिल बना देगा।
मैक्रों की घोषणा
गौरतलब है कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गुरुवार को ऐलान किया था कि उनकी सरकार इस साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देगी।


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