सभी देश ईरानी घातक ड्रोन, ‘शाहिद’ की नक़ल करना चाहते हैं: वॉल-स्ट्रिट जर्नल
अमेरिकी अख़बार वाल-स्ट्रीट जर्नल ने ऐलिस्टर मैकडोनाल्ड के लेख में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है «हर देश ईरानी घातक ड्रोन शाहिद की नक़ल करना चाहता है» — रिपोर्ट में ईरानी ड्रोन के सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक आयामों का विश्लेषण किया गया है और कहा गया है कि ये ड्रोन अब दुनिया भर की सेनाओं के लिए एक नया मॉडल बन चुके हैं।
रिपोर्ट की शुरुआत इस बात से होती है कि, शाहिद ड्रोन ने यूक्रेन युद्ध में मुख्य भूमिका निभाई और यह बताया गया कि, कैसे यह ईरानी हथियार वैश्विक शक्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहा। लेखक याद दिलाता है कि, शाहिद ड्रोन पहली बार बड़े पैमाने पर यूक्रेन के मैदान में प्रयोग हुआ और आज यह समकालीन युद्धों की एक प्रमुख ‘घटनाचिह्न’ बन गया है।
ईरानी ड्रोन और युद्ध के समीकरण में बदलाव
वाल-स्ट्रीट जर्नल कहता है कि शाहिद ड्रोन ने «कम लागत» और «ऊँची प्रभावशीलता» के कारण, आधुनिक युद्धों में क्रांति ला दी है। इन ड्रोन का निर्माण खर्च, लंबी दूरी के मिसाइलों या उन्नत लड़ाकू विमान की तुलना में बहुत कम है, फिर भी ये लक्ष्यों को भारी नुक़सान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। अख़बार लिखता है कि, यही खासियत छोटे खिलाड़ियों को बड़े देशों को चुनौती देने में सक्षम बनाती है — शाहिद को एक «संतुलन बिगाड़ने वाला हथियार» बताया गया है जो कम ख़र्च में बड़ा असर पैदा कर सकता है।
रिपोर्ट आगे बताती है कि, अब यूरोप, एशिया से लेकर लैटिन अमेरिका तक कई देश शाहिद जैसे ड्रोन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। विभिन्न देशों और रक्षा कंपनियों का लक्ष्य शाहिद की वह «विशेष मिलावट» दोहराना है: लंबी रेंज, स्वीकार्य सटीकता और कम कीमत। लेख में कहा गया है: «शाहिद वैश्विक मॉडल बन गया है। जिस तरह क्लाश्निकोव अपने समय में पार्टीशन और नक्सलीय लड़ाइयों में सस्ता हथियार बन गया, आज शाहिद ईंधन-भरे आधुनिक जंगों में उसी तरह की जगह बना रहा है।»
कौन-कौन कोशिश कर रहा है?
अख़बार ने कई देशों के कार्यक्रमों का हवाला दिया है:
1- रूस — 2023 में 1.75 अरब डॉलर के एक समझौते के साथ इस तकनीक तक पहुंच बना ली थी; तब से उसने घरेलू उत्पादन बढ़ाकर निर्भरता घटा ली है।
2- अमेरिका — जुलाई 2025 में पेंटागन ने SpektreWorks कंपनी द्वारा LUCAS नामक एक कम-लागत अनमैन सिस्टम पेश किया; यह शाहिद-136 जैसा संस्करण बताया गया है, जिसका वजन 600 किलोग्राम से कम, लागत करीब 100,000 डॉलर और मॉड्यूलर हमला/खुफिया/कनेक्टिविटी क्षमता है। इस परियोजना की प्रगति डोनाल्ड ट्रम्प के निर्देशों के जवाब में हुई, जिनमें सस्ते ड्रोन के दायरे में बड़े पैमाने का उत्पादन शामिल था।
3- चीन और उत्तर कोरिया — दोनों ने कम-लागत ड्रोन विकसित किए हैं, जिनका जोर समूहात्मक टैक्टिक्स पर है।
4- अन्य पहलें — अमेरिका की DARPA जैसी योजनाएँ (जैसे OFFSET) भी शाहिद जैसी ड्रोन अवधारणाओं से प्रेरित हैं, खासकर प्रशिक्षण और सिमुलेशन के लिए।
अमेरिका और उसके सहयोगियों की चिंता
वाल-स्ट्रीट जर्नल लिखता है कि वॉशिंगटन, ईरानी ड्रोन-प्रौद्योगिकी के प्रसार को लेकर गहरा चिंतित है और वह संबंधित पुर्जों व तकनीक के हस्तांतरण पर पाबंदियाँ लगाकर इसे रोके जाने की कोशिश कर रहा है। खबर में कहा गया है कि, अमेरिका और यूरोप खासतौर पर ईरानी ड्रोन-सप्लाई चेन की निगरानी पर फोकस कर रहे हैं ताकि अन्य देशों को आवश्यक हिस्से न मिलें। फिर भी लेखक मानता है कि इस रुझान को रोकना लगभग नामुमकिन है क्योंकि ड्रोन-तकनीक तेज़ी से अनेक देशों में स्थानीय तौर पर विकसित हो रही है।
रूस का अनुभव और भविष्य की युद्ध-नीति
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि रूस ने यूक्रेन में शाहिद ड्रोन के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से दिखाया कि, ये हथियार महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं, सैन्य केंद्रों और दुश्मन के मनोबल पर प्रभावी ढंग से वार कर सकते हैं। हालांकि यूक्रेनी वायु रक्षा ने कई ड्रोन को ट्रैक और नष्ट किया, पर हर एक ड्रोन पर बचाव में खर्च होने वाली लागत उसके निर्मित मूल्य से कहीं अधिक रही — और यही नयी «आर्थिक चुनौती» बन गई है।
अख़बार का कहना है कि, इस अनुभव ने स्पष्ट कर दिया कि, आत्मघाती-ड्रोन भविष्य की सैन्य विचारधाराओं में विशेष स्थान पा सकते हैं और अनेक सेनाएँ अपनी संरचनाएँ इसी नई हकीकत के मुताबिक़ ढाल रही हैं।
ईरान की वैश्विक-राजनीतिक पहुंच का प्रतीक
वाल-स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक़ ईरान ने रूस और कुछ क्षेत्रीय साथियों को शाहिद ड्रोन उपलब्ध करा कर अपनी हथियार निर्यात की उपलब्धि और जियो-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाया है। रिपोर्ट में संकेत है कि शाहिद सिर्फ़ एक सैन्य उपकरण नहीं रहा, बल्कि ईरान का «जियो-राजनीतिक प्रभुत्व» दर्शाने वाला प्रतीक बन गया है। पश्चिम एशिया, अफ्रीका और यहां तक कि लैटिन अमेरिका के कुछ देश भी इस क्षेत्र में ईरान के अनुभव का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं — और यही बात पश्चिमी देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।


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