वॉशिंगटन में ट्रंप का नेशनल गार्ड को हथियारबंद करने का आदेश

वॉशिंगटन में ट्रंप का नेशनल गार्ड को हथियारबंद करने का आदेश

अमेरिकी रक्षामंत्री ने आदेश दिया है कि वॉशिंगटन डी.सी. में बेघर लोगों को सड़कों से हटाने और गश्त करने वाले नेशनल गार्ड अब हथियार लेकर तैनात होंगे। यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस योजना का हिस्सा है जिसे उन्होंने “अपराध, बेघर और अवैध प्रवास” से निपटने के नाम पर शुरू किया है। इस समय लगभग 2,000 नेशनल गार्ड सैनिक राजधानी वॉशिंगटन में मौजूद हैं।

नेशनल गार्ड अमेरिका की एक रिज़र्व फोर्स है जो आमतौर पर आपात स्थितियों जैसे बाढ़, भूकंप या दंगों में पुलिस की मदद के लिए लगाई जाती है। यह राज्य सरकारों या केंद्र सरकार के अधीन काम कर सकती है और देश के भीतर विभिन्न मिशनों पर तैनात हो सकती है।

रक्षामत्री पीट हेगस्ट ने शुक्रवार को घोषणा की कि नेशनल गार्ड अब हथियारबंद होगी, जबकि पिछले हफ्ते पेंटागन ने कहा था कि, वे बिना हथियार गश्त करेंगे। अब उनकी मानक सैन्य बंदूकें उनके पास होंगी। आलोचकों का कहना है कि नेशनल गार्ड अब तक सीधे अपराधियों को पकड़ने या पुलिस जैसे कामों में शामिल नहीं रही है। उनका काम ज्यादातर शहर के अहम स्थलों जैसे राष्ट्रीय पार्क या “यूनियन स्टेशन” की सुरक्षा तक सीमित रहा है।

अमेरिकी सेना के पूर्व अधिकारी एलेक्स वाग्नर ने इस कदम को “विनाशकारी” बताया है। उनका कहना है कि नेशनल गार्ड के अधिकतर जवानों को पुलिस जैसी जिम्मेदारियों के लिए प्रशिक्षण नहीं मिला है और यह कदम उन्हें मुश्किल में डाल सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि, यदि कोई टकराव हुआ तो व्हाइट हाउस इसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकता है।

ट्रंप ने 11 अगस्त 2025 को आदेश दिया था कि, नेशनल गार्ड को वॉशिंगटन में “अपराध, हिंसा ” से निपटने के लिए उतारा जाए। साथ ही उन्होंने पुलिस को भी सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में ले लिया, जो “डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया होम रूल एक्ट” के तहत संभव हुआ। यह कानून राष्ट्रपति को आपात स्थिति में शहर की पुलिस पर नियंत्रण लेने का अधिकार देता है।

इस कदम की आलोचना करते हुए वॉशिंगटन के मेयर और कई विरोधियों ने इसे “राजनीतिक शो” बताया। उनका कहना है कि ट्रंप इस मॉडल को डेमोक्रेट्स के नियंत्रण वाले अन्य शहरों में भी लागू करने की कोशिश कर सकते हैं। वॉशिंगटन डी.सी. में अधिकांश लोग डेमोक्रेट पार्टी के समर्थक हैं, इसलिए इस फैसले को सत्ता पर अधिक फेडरल नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश माना जा रहा है।

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