हिकमतयार “काबुल का कसाई” बन गया राजनीति का बड़ा खिलाड़ 2016 में अफगान सरकार के साथ शांति समझौता करने वाला गुलबुद्दीन हिकमतयार अफगानिस्तान की राजनीति का बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है।
तालिबान का दुश्मन रहा “काबुल के कसाई” नाम से कुख्यात गुलबुद्दीन हिकमतयार की गिनती अफगानिस्तान के इतिहास के सबसे विवादित लोगों में होती है। एक जमाने में उसे काबुल का कसाई कहा जाता था।
अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज़्बे इस्लामी गुलबुद्दीन का प्रमुख हिकमतयार एक जमाने में तालिबान का कट्टर दुश्मन था। अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री रहे गुलबुद्दीन ने 80 के दशक में सोवियत सेना के खिलाफ मुजाहिदीन की अगुवाई की थी।
अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद गृह युद्ध के समय उसे तालिबान का दुश्मन बताया जाता था। हिकमतयार वह व्यक्ति था जिसकी तलाश तालिबान को भी रही है।
20 वर्ष अफगानिस्तान से बाहर रहने के बाद गुलबुद्दीन 4 मई को काबुल पलट कर आया। सैकड़ों गाड़ियों के बड़े काफिले के साथ वह काबुल आया। गाड़ियों पर अत्याधुनिक हथियार थे। गाड़ियों पर मशीनगनें लगी थी। काबुल आकर वह सीधे राष्ट्रपति भवन गया और अफ़ग़ानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति रहे भगोड़े अशरफ गनी से मुलाकात की।
सितंबर 2016 में अफ़ग़ान सरकार के साथ समझोता हुआ। 1949 में अफगानिस्तान के गजनी में पैदा होने वाले हिकमतयार को को 1968 में सैन्य अकेडमी भेजा गया।
उसे कट्टर इस्लामवादी समझे जाता है और इसी कारण उसे सैन्य अकादमी से निकाला दिया गया जिसके बाद हिकमतयार ने काबुल विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
काबुल विश्वविद्यालय में ही उसकी मुलाकात पंजशीर घाटी के के शेर कहलाने वाले अहमद शाह मसूद से हुई। दोनों लंबे समय तक प्रतिद्वंदी बने रहे।
1970 के दशक के मध्य में हिकमतयार अन्य लोगों के साथ पाकिस्तान भाग गया। 1970 के दशक में अफगानिस्तान, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच छद्म युद्ध का मैदान बनने लगा।
सोवियत सेनाओं के खिलाफ अमेरिका के समर्थन से इस्लामवादी गुट लामबंद हुए। अमेरिका ने इन गुटों को धन एवं सैन्य संसाधन देना शुरू किया। हिकमतयार भी हिज़्बे इस्लामी में शामिल हो गया और बाद में इस पार्टी के बंटवारे का कारण बना।
हिज़्बे इस्लामी में बंटवारे के बाद उसने अपना नया संगठन हिज़्बे इस्लामी गुलबुद्दीन बनाया। जो पाकिस्तान में मौजूद 3 अफगान शरणार्थी शिविर में अपना प्रभाव बनाने में सक्षम रहा। उस समय हिकमतयार अपनी चतुराई एवं तेजी के कारण अमेरिका और पाकिस्तान का पसंदीदा बन गया। अतः उसके संगठन को अमेरिका और पाकिस्तान ने दिल खोल कर वित्तीय एवं सैन्य सहायता दी।
1990 के दशक में अफगानिस्तान में चले गृहयुद्ध के दौरान लाखों लोग मारे गए। हिकमतयार पर इस युद्ध के दौरान हजारों लोगों की हत्या करने का आरोप लगा।
हिकमतयार ना तो दुश्मनों के प्रति दया दिखाता था और ना ही दोस्तों पर कुछ रहम करता था। उसे काबुल का कसाई कहा जाता था। हिकमतयार पंजशीर के शेर कहलाने वाले अहमद शाह मसूद का कट्टर प्रतिद्वंदी था।
हिकमतयार की मदद से ही मसूद को 1976 में पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हिकमतयार ने 1990 में तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति नजीबुल्लाह के खिलाफ भी असफल तख्तापलट का प्रयास किया था।
हालाँकि 1990 के दशक में ही हिकमतयार थोड़े थोड़े समय के लिए अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में काम कर चुका है। अंतिम बार मई 1996 में वह अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री बना लेकिन तालिबान ने सितंबर 1996 में काबुल पर नियंत्रण कर लिया और उसे प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद वह पहले पंजशीर प्रांत और वहां से ईरान भाग गया। 9/11 के हमलों के बाद वह पाकिस्तान भाग गया जहां से वह अपने स्नागतं को चलाता रहा।
यह भी कहा जाता है कि हिकमतयार ही था जिस ने तोरा बोरा की पहाड़ियों से ओसामा बिन लादेन और ऐमन अल जवाहिरी को भागने में मदद की थी।
@Maulai_G


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