तालिबान, महिला पुलिसकर्मी की आँखें निकाल कर सर में मारी गोली अफगानिस्तान पर तालिबान राज के साथ ही एक बार फिर इस आतंकी संगठन की क्रूरता की कहानियां गर्दिश कर रही हैं।
तालिबान की बर्बरता और क्रूरता को लेकर आए दिन कोई ना कोई खबर मीडिया की सुर्खी बनी रहती है। काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही इस संगठन की क्रूरता और बर्बरता तमाम सीमाएं लांग रही हैं।
तालिबान की क्रूरता और बर्बरता को बयान करने वाली एक घटना इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में बनी हुई है। तालिबान आतंकियों ने इस महिला पुलिसकर्मी के साथ बर्बरता की सभी सीमाएं लांघ दी।
अफगानिस्तान की महिला पुलिस में अपनी सेवाएं दे चुकी खातिरा हाशमी ने बताया कि तालिबान के बर्ताव में बिल्कुल भी बदलाव नहीं आया है। तालिबान 20 वर्ष पहले जैसे थे आज भी बिल्कुल वैसे ही हैं।
खातिरा हाशमी जब प्रेग्नेंट थी उसी समय तालिबान आतंकियों ने उनका अपहरण कर लिया था। उन्हें बुरी तरह से मारा पीटा गया। उन पर टॉर्चर किया गया। उनके सर में गोलियां मारी गई और उनकी दोनों आंखें निकाल ली गई।
खातिरा हाशमी के अनुसार किसी महिला का अपने घर से बाहर निकलना तालिबान की नजर में सबसे बड़ा पाप है। अपने साथ हुए अत्याचार की दास्तान बयान करते हुए खातिरा हाशमी ने कहा कि उनके साथ जो कुछ हुआ वह आज भी कई महिलाओं के साथ हो रहा है। लेकिन महिलाओं की मजबूरी है कि वह बाहर नहीं आ सकती हैं। वह किसी को अपने साथ हो रहे अत्याचार और जुल्मों को नहीं बता सकती हैं।
खातिरा हाशमी फिलहाल भारत में रह रही हैं लेकिन आज भी अपने साथ हुए जुल्मों को याद कर वह लरज़ जाती हैं । उन्होंने कहा कि तालिबान इस्लाम के नाम पर अफ़ग़ान लोगों को सता रहा है।
खातिरा हाशमी ने कहा कि अपने ऊपर हुए हमले और अत्याचार के बाद मैं जान गई थी कि मेरे पिता भी तालिबान के साथ मिले हुए हैं। मेरे पिता ने मुझे अफ़ग़ान पुलिस ज्वाइन करने से मना किया था। वह जानते थे कि मेरे साथ क्या हो सकता है। इसके बावजूद उन्होंने मेरी कोई हिफाजत नहीं की।
खातिरा ने बताया कि 1 दिन जब वह अपनी ड्यूटी से वापस आ रही थी तो 3 तालिबानी लड़ाके घर के पास उसका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मुझ पर हमला किया। मुझ पर चाकुओं से 8 से लेकर 10 बार हमले किए गए। मुझ पर गोलियां चलाई गई। जब सिर पर एक गोली लगी तो मैं बेहोश हो गई।
तालिबान को सिर्फ इतने पर भी तसल्ली ना हुई। तालिबान ने इस महिला पुलिसकर्मी की आंखें भी निकाल ली। तालिबान के अत्याचार के बाद खातिरा हाशमी एक जिंदा लाश में बदल गई, उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी जान तो बच गई लेकिन उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई।
हाश्मी कहती हैं कि वह आज जिंदा तो है, सांस तो ले रही है लेकिन एक-एक दिन किसी संघर्ष से कम नहीं है। छोटे से छोटा काम करना भी एक चुनौती बन चुका है। बेहतर इलाज उम्मीद में भारत आई हाशमी का परिवार अफ़ग़ानिस्तान में ही है।
हाशमी ने बताया कि उन्हें अपने बच्चों की चिंता है लेकिन वह अफगानिस्तान पलट कर नहीं जा सकती। तालिबान जानता है कि वह जिंदा है और उनकी तलाश तेजी से जारी है।
हाशमी ने कहा कि उन्होंने आठ 10 दिन पहले अपने बच्चों से बात की थी। तालिबानी लड़ाके अक्सर उनके घर आते हैं। दिन हो या रात दरवाजा खटखटा कर पूछते हैं कि हाशमी और उनके पति कब वापस आ रहे हैं ? वह धमकी दे रहे हैं कि अगर तुम्हारे माता-पिता वापस नहीं आते तो तुम्हारे साथ कुछ भी हो सकता है।
@Maulai_G