एआई का जितना ज़्यादा इस्तेमाल होगा, दुनिया में पानी की कमी उतनी ही बढ़ती जाएगी

एआई का जितना ज़्यादा इस्तेमाल होगा, दुनिया में पानी की कमी उतनी ही बढ़ती जाएगी

दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की चर्चा हो रही है। इसे इंसानी इतिहास की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, आने वाले कुछ सालों में एआई का बढ़ता इस्तेमाल दुनिया में पानी की भारी कमी ला सकता है? जी हां, एआई तकनीक को चलाने में काफी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। इसलिए जैसे-जैसे इसका इस्तेमाल बढ़ेगा, पानी की खपत भी तेज़ी से बढ़ेगी।

हाल ही में बीबीसी ने एक रिपोर्ट में बताया है कि, एआई जनरेशन में इस्तेमाल होने वाले कंप्यूटरों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी जरूरी होता है। जितने ज्यादा सवाल एआई से पूछे जाते हैं, कंप्यूटर उतना ही गर्म होता है और उसे ठंडा रखने के लिए और पानी की जरूरत पड़ती है। अगर एआई का इस्तेमाल आम हो गया, तो इसे ठंडा रखने के लिए पानी की मांग भी बढ़ेगी और पानी की कमी की स्थिति पैदा हो सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार, चैटजीपीटी हर सवाल का जवाब देने में 2 से 10 चम्मच तक पानी का उपयोग करता है। यह निर्भर करता है कि सवाल कितना लंबा और जटिल है। जितना जटिल जवाब होगा, कंप्यूटर उतना ही गर्म होगा और पानी की जरूरत उतनी ही ज़्यादा होगी। सिर्फ सवाल-जवाब ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन शॉपिंग, डीपफेक बनाने, लेख, फोटो या वीडियो जनरेट करने में भी भारी कंप्यूटिंग पावर की जरूरत होती है, जिससे बिजली और पानी की खपत भी बढ़ती है।

ध्यान रहे कि एआई डेटा सेंटर्स को चलाने वाली बिजली को पैदा करने में भी पानी लगता है। एक अनुमान के अनुसार, चैटजीपीटी हर दिन करीब 1 अरब सवालों के जवाब देता है, जिससे आप समझ सकते हैं कि कितना पानी खर्च होता होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि 2027 तक एआई इंडस्ट्री साल भर में डेनमार्क जैसे देश की सालाना पानी की जरूरत से भी ज़्यादा पानी इस्तेमाल करेगी। 2030 तक यह खपत दुगुनी हो सकती है।

हाल ही में गूगल ने बताया कि उसने 2024 में 37 अरब लीटर पानी इस्तेमाल किया, जिसमें से 29 अरब लीटर पानी भाप बनकर उड़ गया। आमतौर पर कूलिंग के लिए इस्तेमाल किया गया 80% पानी भाप बन जाता है। गूगल ने जितना पानी एक साल में इस्तेमाल किया, उतने में रोजाना 16 लाख लोगों को 50 लीटर पानी दिया जा सकता था। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एक इंसान को रोजाना कम से कम 50 लीटर पानी मिलना जरूरी है।

चिंताजनक बात यह है कि एआई कंपनियों के ज़्यादातर डेटा सेंटर्स ऐसे देशों में हैं जहां पहले से ही पानी की कमी है। सूखे इलाकों में डेटा सेंटर्स बनाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण हैं, जैसे वहां की ज़मीन में नमी कम होती है। लेकिन इस वजह से इन देशों में पानी की गंभीर समस्या पैदा हो रही है। यही कारण है कि चिली और लैटिन अमेरिका जैसे देशों में डेटा सेंटर्स का विरोध हो रहा है। स्पेन में ऐसे ही एक संगठन का नाम है — “Your Cloud is Drying My River” यानी “तुम्हारा क्लाउड मेरी नदी को सुखा रहा है”।

ऐसा नहीं है कि कंपनियां इन खतरों से अनजान हैं। जैसे कारखानों से निकलने वाले कार्बन को कम करने के लिए प्रोजेक्ट चलाए जाते हैं, या पेड़ काटकर फिर से लगाने की मुहिम चलाई जाती है, वैसे ही एआई कंपनियां भी पानी खत्म करने के साथ-साथ पानी के नए स्रोत खोजने के लिए परियोजनाओं पर पैसा खर्च कर रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब मौजूदा स्रोत खत्म हो जाएंगे, तो कंपनियां पानी कहां से लाएँगी? जब एआई का इस्तेमाल आम हो जाएगा, तब क्या पानी की कमी और उसकी कीमत में भारी इज़ाफा नहीं होगा?

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