अमेरिका की फेडरल ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के टैरिफ को असंवैधानिक क़रार दिया

अमेरिका की फेडरल ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के टैरिफ को असंवैधानिक क़रार दिया

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मैनहट्टन स्थित कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड से तगड़ा झटका लगा है। अदालत ने उनके द्वारा लगाए गए आयात शुल्क (टैरिफ) को असंवैधानिक करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है। अदालत के मुताबिक, ट्रंप ने इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का गलत हवाला देते हुए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और संवैधानिक सीमाओं को लांघते हुए व्यापक टैरिफ थोप दिए।

इस मामले पर सुनवाई तीन जजों की विशेष बेंच ने की, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि राष्ट्रपति को आपातकाल की स्थिति में कुछ सीमित शक्तियां मिलती हैं, लेकिन ट्रंप ने इन शक्तियों का प्रयोग बिना किसी ठोस और वैध आपात स्थिति के किया। अदालत ने इसे संवैधानिक संतुलन के खिलाफ माना।

फैसले की नींव दो अहम याचिकाओं पर रखी गई थी। पहली याचिका लिबर्टी जस्टिस सेंटर ने देश के पांच छोटे व्यापारियों की ओर से दायर की थी, जबकि दूसरी में 12 आयातकों ने मिलकर अदालत से न्याय की मांग की थी। इनका तर्क था कि ट्रंप की टैरिफ नीति के कारण विदेशी सामान महंगा हो गया है, जिससे उनके व्यवसाय पर विपरीत प्रभाव पड़ा है और उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।

ट्रंप ने 2 अप्रैल 2025 को “लिबरेशन डे” की घोषणा करते हुए 100 से अधिक देशों से आयातित वस्तुओं पर एकतरफा टैरिफ थोप दिए थे। ट्रंप का दावा था कि यह कदम अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करेगा और उन देशों को सबक सिखाएगा जो अमेरिका से कम और अमेरिका को ज्यादा सामान बेचते हैं। लेकिन आलोचकों ने इसे तानाशाही रवैया बताया।

हालांकि कुछ हफ्तों बाद, ट्रंप प्रशासन ने अधिकतर देशों के खिलाफ टैरिफ पर अस्थायी रोक लगा दी थी, लेकिन चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए वहां से आयात पर टैरिफ 145% तक बढ़ा दिए गए। इस व्यापारिक टकराव के जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाए थे, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा गया।

कोर्ट के फैसले के बाद ट्रंप प्रशासन ने साफ कर दिया है कि वह इस निर्णय को ऊपरी अदालत में चुनौती देगा। दूसरी ओर, ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर दावा किया कि उनकी टैरिफ नीति देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य थी और वह “अमेरिका को फिर से महान” बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। इस फैसले से यह संकेत मिला है कि अमेरिका की न्यायपालिका, संविधान और विधिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

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