आज फ़िलिस्तीनी बच्चों का ख़ून एक क्रांति बन चुका है

आज फ़िलिस्तीनी बच्चों का ख़ून एक क्रांति बन चुका है

इज़रायल हमास के बीच होने वाले युद्ध को एक महीने से ज़्यादा का समय हो चुका है। फिलहाल 4 दिनों के युद्ध विराम की घोषणा हुई है। जिसमें क़तर की मध्यस्थता से बंधकों के बदले फ़िलिस्तीनी बंधकों को रिहा करने का समझौता हुआ है

इस युद्ध-विराम से पहले 46 दिनों तक इज़रायल ने लगातार ग़ाज़ा पर दिन रात बमबारी की। उसकी इस बर्बरता पूर्ण कार्यवाई में 14000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी बिना किसी जुर्म और गुनाह के शहीद हो चुके हैं। फ़िलिस्तीनी बमबारी में शहीद होने वालों में मासूम बच्चों की संख्या 7000 जबकि महिलाओं की संख्या 4000 है। हमास को ख़त्म करने के नाम पर इज़रायल ने जो बेगुनाहों और मासूमों का नरसंहार किया है उस पर पूरी दुनियां खामोश है।

प्रश्न यह उठता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाल-दिवस मनाने वाले ग़ाज़ा के इन मासूम बच्चों की शहादत पर ख़ामोश क्यों हैं? क्या उन्हें इज़रायली बमबारी में शहीद होने वाले बच्चों की लाशें नहीं दिखाई दे रहीं ? क्या मलबे के ढेर में दबे फ़िलिस्तीनियों के मुर्दा शरीर नज़र नहीं आ रहें ? यूक्रेन में रूसी हमले को अत्याचार कहने वालों की मानवता कहां चली गई ? इंसानियत के तथाकथित ठेकेदार ग़ाज़ा में होने वाले इंसानियत के क़त्ले आम पर चीख़ते क्यों नहीं ?

आज फ़िलिस्तीनी बच्चों का ख़ून एक क्रांति बन चुका है। उनकी लाशें पुकार पुकार कर कह रही हैं कि, जो लोग नहीं जानते कि आतंकवाद क्या है, वह मलबे में दबे हमारे मासूम लाशों को देखकर समझ लें कि आतंकवाद क्या है और आतंकी कौन है? ऐसा नहीं है कि फिलिस्तीनियों पर इज़रायल ने पहली बार ऐसा अत्याचार किया है। वह हमेशा ग़ाज़ा वासियों पर इस तरह का अत्याचार करता रहा है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इज़रायल पूरी दुनियां के सामने बेनक़ाब हुआ है, और पहली बार पूरी दुनियां ने फिलिस्तीनी मुद्दे की तरफ़ ध्यान दिया है।

ऐसा पहली बार हो रहा है, जब पूरी दुनियां ने एक साथ इज़रायल को अत्याचारी और अतिक्रमणकारी कहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब, यूरोपीय देशों की जनता हर रोज़ खुल कर फिलिस्तीन के समर्थन और इज़रायल के विरोध में प्रदर्शन कर रही है। वहां की जनता के इस प्रदर्शन से यूरोपीय शासकों को अपनी हुकूमत की गद्दी हिलती हुई नज़र आ रही है। पूरी दुनियां को आतंकवाद की उपाधि देने वाले नेतन्याहू आज ख़ुद एक आतंकवादी से भी ज़्यादा घिनौना कार्य अंजाम दे रहे हैं। वह ऐसा इस लिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि ज़ुल्म की इस दुनियां में मज़लूम के लिए आवाज़ उठाने वाला कोई देश नहीं है।

हमास को मिटाने के नाम पर नेतन्याहू ने ग़ाज़ा में जो दरिंदगी दिखाई है उससे वह पूरी दुनियां में एक्सपोज़ हो चुके हैं। अब यह बात पूरी दुनियां समझ चुकी है कि उनका मक़सद ग़ाज़ा को इस तरह बर्बाद करना है कि वह कभी आबाद न हो सके। उनका मक़सद हमास को ख़त्म करना नहीं, बल्कि ग़ाज़ा पर क़ब्ज़ा करना है।

आज हमास ने नेतन्याहू को ऐसे दलदल में लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ से निकलना उनके लिए ना मुमकिन हो गया है। वह ऐसे दो राहे पर खड़े हो गए हैं जहां आगे भी खाई है और पीछे भी खाई। जिस सैन्य शक्ति को वह अपनी सबसे बड़ी ताक़त समझ रहे थे ,वही आज उनके लिए सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई है। वह समझ रहे थे कि उनके आक्रमण और अत्याचार का पूरा यूरोप समर्थन करेगा, लेकिन वह ग़लत साबित हुए। यूरोपीय देशों ने अवश्य उनका खुल कर समर्थन किया लेकिन वहां की जनता ने उनके अत्याचार पर ख़ामोश रहना जुर्म समझ लिया। इसीलिए यूरोपीय जनता ने इज़रायल के विरुद्ध ऐतिहासिक प्रदर्शन किए और खुलकर ग़ाज़ा के समर्थन में नारे लगाए जो अभी भी जारी है।

नेतन्याहू ग़ाज़ा में मासूम बच्चों औरतों मर्दों की लाशों के ढेर लगाने के बाद भी भयभीत नज़र आ रहे हैं। जिस तरह से हमास ने उनके टैंकों को नष्ट किया है, और उनके सैनिकों को मौत के घाट उतारा है जिसे वह मीडिया द्वारा छुपाने की कोशिश कर रहे हैं, उस से उन्हें इज़रायली फ़ौज में भी बग़ावत की झलक साफ़ नज़र आ रही है।

ग़ाज़ा पर इज़रायली हमले और अत्याचार ने अरब देशों को भी पूरी तरह बेनक़ाब कर दिया है जिनके सरों पर इज़रायल की कायरता और बर्बरता के बाद भी जूं तक नहीं रेंगी। ग़ाज़ा के अस्पतालों पर हमले के बाद भी वह ख़ामोश रहे। अस्पताल में ऑक्सीजन और उपचार की कमी से मरने वालों की लाशें देखकर भी उनका ख़ून नहीं खौला। अक़्सा की आज़ादी की बात करने वाले आज एक ग़ुलाम की तरह इज़रायली अत्याचार के सामने सर झुकाये खड़े हुए हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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