सऊदी अरब, इज़रायल के साथ सामान्यीकरण के करीब है: अमेरिकी दूत

सऊदी अरब, इज़रायल के साथ सामान्यीकरण के करीब है: अमेरिकी दूत

अमेरिका के सीरिया के लिए विशेष दूत थॉमस बैरक (Thomas Barrack) ने एक बार फिर पश्चिमी दखलअंदाज़ी की नीति को आगे बढ़ाते हुए, ग़ाज़ा युद्ध के बाद मध्य पूर्व में राजनीतिक बदलाव की रूपरेखा पेश की है। बैरक ने अपने एक्स (ट्विटर) अकाउंट पर लंबी पोस्ट में कहा कि क्षेत्र की सबसे अहम ज़रूरत “शांति को मज़बूत करना”, “हिज़्बुल्लाह को निशस्त्र करना” और लेबनान व सीरिया को सामान्यीकरण समझौतों में शामिल करना है। उन्होंने दावा किया कि, सऊदी अरब भी अब इज़रायल के साथ रिश्ते सामान्य करने के क़रीब है।

‘अरबी 21’ के मुताबिक, बैरक ने कहा कि 13 अक्टूबर को शर्म-अश-शेख़ में आयोजित सम्मेलन, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप और कई अरब व इस्लामी देशों के नेता शामिल हुए, “मध्य पूर्व की समकालीन कूटनीति में एक निर्णायक पल” था। उन्होंने कहा कि जो चीज़ “ग़ाज़ा में युद्ध-विराम” के रूप में शुरू हुई थी, वह अब ट्रंप की अगुवाई में “पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय समृद्धि का एक नया संयुक्त प्रोजेक्ट” बन चुकी है।

बैरक ने कहा कि “अरब जगत और पश्चिम अब मिलकर डर को अवसरों से और अलगाव को खुले दरवाज़ों से बदलने की दिशा में एकजुट हैं।” उनके अनुसार, शर्म-अश-शेख़ सम्मेलन सिर्फ़ युद्ध-विराम या बंदियों की रिहाई का जश्न नहीं था, बल्कि यह “लंबे समय की शांति प्रक्रिया और क्षेत्रीय एकीकरण की शुरुआत” थी।

सीरिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “दमिश्क, शांति योजना की गुमशुदा कड़ी है।” हाल ही में अमेरिकी सीनेट द्वारा ‘सीज़र क़ानून’ को रद्द करने के प्रस्ताव के बाद, बैरक ने कांग्रेस से इसे पूरी तरह समाप्त करने की मांग की। उन्होंने, दमिश्क पर हावी विद्रोही गुटों के अपराधों का कोई ज़िक्र किए बिना, कहा कि यह क़ानून अब “पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे एक राष्ट्र का गला घोंट रहा है।”

उन्होंने ट्रंप के उस फ़ैसले की तारीफ़ की जिसमें मई में दमिश्क़ पर अमेरिकी प्रतिबंध हटाने की घोषणा की गई थी और कहा कि “सज़ा की नीति से भागीदारी की नीति में बदलाव”, वॉशिंगटन के लिए “एक ऐतिहासिक मोड़” है।

लेबनान के बारे में उन्होंने कहा कि पूर्वी क्षेत्र में शांति की दूसरी शर्त “हिज़्बुल्लाह का निशस्त्रीकरण और इज़रायल के साथ सुरक्षा व सीमा वार्ता की शुरुआत” है। उन्होंने कहा कि 2024 की संघर्ष-विराम संधि असफल रही, क्योंकि उसमें “दोनों पक्षों के बीच सीधे अमल का कोई तंत्र नहीं था।”

बैरक के अनुसार, “हिज़्बुल्लाह का निशस्त्रीकरण सिर्फ़ इज़रायल की सुरक्षा की मांग नहीं, बल्कि लेबनान के लिए अपनी संप्रभुता पुनः प्राप्त करने और विदेशी निवेश आकर्षित करने का अवसर है।” उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका, लेबनान पर दबाव नहीं बल्कि “प्रोत्साहन के ज़रिए शांतिपूर्ण समाधान” की कोशिश कर रहा है, और खाड़ी देशों की मदद को लेबनान की प्रगति और सेना के प्रशिक्षण से जोड़ा गया है।

उन्होंने बताया कि अमेरिका ने “हिज़्बुल्लाह को एक राजनीतिक पार्टी में बदलने के लिए कूटनीतिक समर्थन” भी दिया था, लेकिन बेरूत की आंतरिक राजनीति के कारण यह प्रक्रिया रुक गई। बैरक ने चेतावनी दी कि अगर लेबनान ने कार्रवाई नहीं की, तो इज़राइल के साथ एक नया टकराव हो सकता है, और अगर युद्ध के बहाने चुनाव टाले गए, तो यह “राजनीतिक व्यवस्था के ढहने” का कारण बन सकता है।

अंत में, उन्होंने कहा कि शर्म-अश-शेख़ सम्मेलन के बाद “अब्राहम समझौतों” का विस्तार और स्पष्ट हो गया है, और अब “सऊदी अरब औपचारिक रूप से इस प्रक्रिया में शामिल होने के मुहाने पर है।” उनके अनुसार, “रियाद के इस कदम के बाद, अन्य देश भी उसी रास्ते पर चलेंगे,” क्योंकि अब यह प्रक्रिया “दबाव नहीं, बल्कि समृद्धि के आकर्षण से प्रेरित” लगती है — और “पूर्व के कई देश इसे अनदेखा नहीं कर पाएंगे।”

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