पाकिस्तान ने अफ़ग़ान सीमा पर जंग अपने लिए छेड़ी है या अमेरिका के लिए?

पाकिस्तान ने अफ़ग़ान सीमा पर जंग अपने लिए छेड़ी है या अमेरिका के लिए?

पहले दोहा में और फिर इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बातचीत हुई। दोनों देशों ने संघर्ष-विराम को लेकर कुछ प्रगति पर सहमति जताई, लेकिन इस विवाद की असली वजह अब भी जस की तस है। पाकिस्तान का आरोप है कि, अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से उसकी सीमा के अंदर आतंकी हमले हो रहे हैं, इसलिए उसे अधिकार है कि वह अफ़ग़ान  में घुसकर जवाबी कार्रवाई करे। जबकि अफ़ग़ानिस्तान का सवाल है कि, जब पाकिस्तान की सेना खुद सीमा पर तैनात है तो अफ़ग़ानिस्तान उसकी ज़मीन में घुसकर कैसे हमला कर सकता है? क्या ये आरोप और जवाब कुछ जाने-पहचाने नहीं लगते? भारत में जब भी कोई बड़ा आतंकी हमला होता है, पाकिस्तान पर यही आरोप लगता है कि, उसकी जमीन से आतंकी संगठन ऐसी वारदातें कर रहे हैं। और पाकिस्तान हर एक ही तरह का झूठा और मक्कारी भरा बयान देता है —“आपकी सीमा के अंदर हम कोई कार्रवाई कैसे कर सकते हैं?”

हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के साथ हुई वार्ता में भी पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने यही कहा कि “अफ़ग़ानिस्तान की भूमि या वायुसीमा का उल्लंघन न किया जाए और कोई भी संगठन या दुश्मन ताक़त पाकिस्तान की धरती को अफ़ग़ानिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल न करे।” क्या भारत भी हर बातचीत और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान से यही मांग नहीं करता रहा है? फिर पाकिस्तान यही आरोप अफ़ग़ानिस्तान पर क्यों लगा रहा है ? फिर पाकिस्तान यह क़बूल क्यों नहीं करता कि, वह भी भारत में घुसकर आतंकी हमले करता है? और भारत को भी यह अधिकार है कि, वह पाकिस्तान में घुसकर जवाबी कार्रवाई करे।

मीडिया में पाक-अफ़ग़ान झड़पों की खबरें उस समय तेज़ हुईं जब अफ़ग़ान विदेश मंत्री अमीरुल्लाह खान मुत्तकी भारत दौरे पर थे और उनका स्वागत बड़े सम्मान के साथ किया गया। यानी भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्तों में एक नया अध्याय खुल रहा था। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि, अफ़ग़ानिस्तान की भूमि से होने वाले हमले भारत की साजिश पर किए जा रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि, इन झड़पों और बातचीतों की राजनीतिक कड़ी कहीं न कहीं भारत से जुड़ी है। लेकिन यह पाकिस्तान भी जानता है कि, भारत कभी भी आतंकी हमला नहीं करता , भारत की सेना इतनी शक्तिशाली है कि, वह अपने देश पर होने वाले किसी भी आतंकी हमले का पाकिस्तान में घुसकर मुंहतोड़ जवाब दे सकती है, और उसने “ऑपरेशन सिंदूर” से यह साबित भी कर दिया है। असल मामला पाकिस्तान के बताए मुताबिक नहीं है—इसकी डोरें एक ओर चीन से और दूसरी ओर अमेरिका से जुड़ती हैं।

डोनाल्ड ट्रंप, जो रूस से नज़दीकी के कारण चीन और भारत दोनों से व्यापारिक टकराव मोल ले चुके हैं, इस बात से भी परेशान हैं कि, अगर वे यूक्रेन को इस्तेमाल कर रूस को कमजोर नहीं कर सके तो एशिया में फिर से रूस का प्रभाव बढ़ जाएगा। इसी वजह से उन्होंने दक्षिण एशिया में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए अफ़ग़ानिस्तान से बगराम एयरबेस वापस मांगा, ताकि अमेरिका क्षेत्रीय गतिविधियों पर नज़र रख सके। अफ़ग़ानिस्तान ने साफ़ इनकार कर दिया—“हम अपनी ज़मीन पर किसी विदेशी फौज को नहीं बर्दाश्त करेंगे।” उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका पहले ब्रिटेन, रूस और खुद अपने अतीत को देख ले।

कुछ ही दिनों बाद अफ़ग़ान विदेश मंत्री मुत्तकी भारत के दौरे पर आए और उसी दौरान पाक-अफ़ग़ान सीमा पर झड़पें शुरू हो गईं। विशेषज्ञों का कहना है कि, मुत्तकी का भारत दौरा चीन और रूस की सहमति से हुआ था। भले ही अफ़ग़ानिस्तान ने अमेरिका को बगराम एयरबेस देने से मना कर दिया हो, लेकिन यह आशंका थी कि, अमेरिका अपनी दौलत के दम पर अफ़ग़ानिस्तान को राज़ी कर लेगा। इसलिए रूस ने पहले तालिबान सरकार को मान्यता देते हुए अपने यहां अफ़ग़ान दूतावास खोला, और फिर भारत ने मुत्तकी को आमंत्रित किया—ताकि यह संदेश जाए कि, क्षेत्र के देश एकजुट हैं और उनमें कोई आपसी दुश्मनी नहीं।

ठीक उसी वक्त पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच लड़ाई शुरू हो गई। जानकारों ने इस पर कई सवाल उठाए हैं। पहला सवाल यही है—जो सलाह पाकिस्तान भारत को देता है, खुद उस पर अमल क्यों नहीं करता? अगर तुम्हारी सीमा में आतंकी हमले हो रहे हैं तो अपने सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करो, पड़ोसी पर आरोप लगाने से क्या हासिल? और बिना कोई सबूत पेश किए पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान में हमला करने की इजाज़त कैसे मिल गई? रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जहां “आतंकवाद” का नाम आता है, वहां अमेरिकी दखल से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर रहा है, तो क्या यह अमेरिका की शह पर नहीं हो रहा? क्या यह अफगानिस्तान को फिर से अस्थिर बनाने की कोई नई चाल नहीं है?

यह याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान को भले “अफ़ग़ानिस्तान का दोस्त” कहा जाता हो, लेकिन उसने हमेशा वही किया है जो अमेरिका चाहता था — चाहे रूस के खिलाफ “अफ़ग़ान जिहाद” में साथ देना हो, या तालिबान के खिलाफ अमेरिकी युद्ध, या दोहा में अमेरिकी वापसी के लिए बातचीत की मेज़ लगाना। पाकिस्तान की सारी कोशिशें अफ़ग़ानिस्तान के लिए नहीं, अमेरिका के लिए रही हैं। इसलिए अगर कुछ लोग यह कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने बगराम एयरबेस न देने पर अमेरिका की धमकी के बाद ही अफ़ग़ानिस्तान पर झड़पें शुरू कीं — तो यह बात झूठी नहीं लगती।

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