चुनाव आयोग को राहुल पर ‘चिल्लाने’ की बजाय, जांच का आदेश देना चाहिए था: पूर्व सीईसी
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. क़ुरैशी ने रविवार को कहा कि, “वोट चोरी” के आरोपों पर चुनाव आयोग को विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर “चिल्लाने” के बजाय जांच का आदेश देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आयोग की भाषा “आपत्तिजनक और आक्रामक” रही है।
पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कुरैशी ने कहा कि, राहुल गांधी ने आरोप लगाते समय जिन शब्दों का इस्तेमाल किया—जैसे “हाइड्रोजन बम”—वह राजनीतिक बयानबाज़ी थी, लेकिन उनकी शिकायतों की विस्तृत जांच ज़रूरी थी। उन्होंने बिहार में मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया पर भी आयोग को आड़े हाथों लिया और कहा कि, यह कदम आयोग के लिए “पंडोरा बॉक्स” खोलने और “भंवरे के छत्ते में हाथ डालने” जैसा है।
क़ुरैशी (जो 2010 से 2012 तक सीईसी रहे) ने कहा कि, चुनाव आयोग को विपक्ष का विश्वास जीतना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि अपने कार्यकाल में वे हमेशा विपक्षी दलों को प्राथमिकता देते थे क्योंकि वे “अंडरडॉग” होते हैं। उनके अनुसार सत्ता पक्ष को वैसे भी अतिरिक्त तवज्जो की आवश्यकता नहीं होती।
उन्होंने आलोचना की कि, आज विपक्ष को बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है क्योंकि आयोग उनसे मिलने तक को तैयार नहीं। क़ुरैशी के मुताबिक आयोग को राहुल गांधी के आरोपों पर हलफनामा दाखिल करने के बजाय जांच का आदेश देना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं, सड़क के आम आदमी नहीं, वे करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। ऐसे में आयोग का उनसे आपत्तिजनक भाषा में जवाब देना उचित नहीं था। क़ुरैशी ने यह भी कहा कि यदि आयोग से विपक्ष यह मांग कर दे कि वह हर नियम को “त्रुटिरहित” साबित करने के लिए शपथपत्र दे और गलती होने पर आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाए, तो स्थिति कितनी कठिन हो जाएगी।
उन्होंने ज़ोर दिया कि आयोग का दायित्व केवल निष्पक्ष रहना ही नहीं, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी है। जांच से तथ्यों का खुलासा होता है और इस मामले में आयोग ने जांच का अवसर गंवा दिया।
यह बयान तब आया जब हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी को सात दिनों में शपथपत्र देकर आरोप सिद्ध करने को कहा था, अन्यथा उनके दावे “निराधार” माने जाएंगे। राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 2024 लोकसभा चुनावों के दौरान एक लाख से अधिक वोट “चोरी” होने का आरोप लगाया था और बिहार में “वोटर अधिकार यात्रा” भी निकाली थी।
क़ुरैशी ने मतदाता सूची में बदलाव के लिए आयोग द्वारा ईपीआईसी (वोटर आईडी कार्ड) को मान्य दस्तावेज़ों की सूची से हटाने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह कार्ड स्वयं आयोग की ही रचना है और इसे अस्वीकार करना गंभीर परिणाम देगा। उनके अनुसार 30 वर्षों की मेहनत को तीन महीने में “कूड़ेदान” में फेंकना, आयोग को परेशानी में डालेगा।
उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल पंडोरा बॉक्स खोलने जैसा है बल्कि “भंवरे के छत्ते में हाथ डालने” जैसा है, जिससे आयोग को नुकसान होगा। उन्होंने आश्चर्य जताया कि सुप्रीम कोर्ट ने ईपीआईसी के बजाय केवल आधार को लागू करने पर ज़ोर क्यों दिया, जबकि ईपीआईसी आयोग का अपना बनाया हुआ पहचान पत्र है।


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