चीन जानबूझकर अमेरिका से सोयाबीन की खरीदारी नहीं कर रहा: ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि, बीजिंग जानबूझकर अमेरिका से सोयाबीन की खरीद नहीं कर रहा, जो “आर्थिक दुश्मनी” के बराबर है। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब चीन के साथ कुछ व्यापारिक संबंध समाप्त करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है, जिनमें खाद्य तेल (edible oil) का व्यापार भी शामिल है।
ट्रंप ने मंगलवार को कहा, “मुझे पूरा यकीन है कि चीन जानबूझकर हमारी सोयाबीन नहीं खरीद रहा है। यह हमारे किसानों के खिलाफ एक जानबूझकर किया गया आर्थिक हमला है।” उन्होंने आगे कहा कि “अमेरिका चीन से खाद्य तेल और अन्य वस्तुओं की खरीद बंद कर सकता है। हम आसानी से अपना तेल खुद बना सकते हैं, हमें इसके लिए चीन पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं।”
डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा कि चीन में इस समय “अजीब और खतरनाक घटनाएँ” हो रही हैं। उनके मुताबिक, “चीन अब बहुत शत्रुतापूर्ण रुख अपना चुका है। वह दुनिया भर के देशों को पत्र भेज रहा है कि वे हर उस उत्पाद पर निर्यात नियंत्रण लागू करेंगे जो दुर्लभ मिट्टी या उसके तत्वों से जुड़ा है, चाहे वह वस्तु चीन में निर्मित न भी हो। यह कदम वैश्विक बाजारों को अवरुद्ध कर देगा और लगभग हर देश के लिए परेशानी पैदा करेगा – खासकर खुद चीन के लिए।”
ट्रंप ने आगे बताया कि, अमेरिका अब चीन से आने वाले उत्पादों पर बड़े पैमाने पर टैरिफ (शुल्क) बढ़ाने पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा, “हम चीन के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की एक पूरी श्रृंखला पर काम कर रहे हैं, जिसमें आयात पर भारी टैक्स बढ़ाना शामिल है।”
हाल के महीनों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव काफी बढ़ गया है। दोनों देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ और प्रतिबंधों के कारण द्विपक्षीय व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अगस्त में चीन का अमेरिका को निर्यात 33% घटकर 47.3 अरब डॉलर रह गया, जबकि अमेरिका से चीन का आयात 16% घटकर 13.4 अरब डॉलर पर आ गया। यह गिरावट जनवरी–फरवरी 2025 के बाद से चीन की सबसे धीमी निर्यात वृद्धि दर है।
इसी बीच, बीजिंग ने दुर्लभ खनिजों (rare minerals) के निर्यात पर व्यापक नियंत्रण लागू किए हैं, जो वैश्विक तकनीकी उद्योग, रक्षा क्षेत्र और हरित ऊर्जा निर्माण के लिए बेहद अहम हैं। हाल ही में चीन ने पाँच नए दुर्लभ खनिजों को अपनी निर्यात प्रतिबंध सूची में शामिल किया, जिससे अब कुल 12 खनिज नियंत्रण के दायरे में आ गए हैं।
विश्लेषकों के अनुसार, चीन का यह कदम उसके “रणनीतिक संसाधनों के हथियारकरण (weaponization of resources)” की नीति का हिस्सा है, जिसके ज़रिए वह वैश्विक तकनीकी और आर्थिक शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में मोड़ना चाहता है।


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