दीर अल-बलह में इज़रायली क्रूरता के बाद अमेरिका की खोखली संवेदना

दीर अल-बलह में इज़रायली क्रूरता के बाद अमेरिका की खोखली संवेदना

पश्चिम एशिया में इज़रायली सेना के अपराधों के प्रति हमेशा से उदार और समर्थक भूमिका निभाने वाली अमेरिकी सरकार ने एक बार फिर दुनिया के सामने घड़ियालू आँसू बहाए। दीर अल-बलह में इज़रायली सेना द्वारा किए गए जघन्य अपराधों और निर्दोष फिलिस्तीनी नागरिकों के जनसंहार के बावजूद, अमेरिका की प्रतिक्रिया केवल खोखली और संवेदनहीन बयानबाज़ी तक सीमित रही।

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के  घड़ियालू आंसू
मंगलवार सुबह अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने दीर अल-बलह में फिलिस्तीनी शरणार्थियों पर किए गए इज़रायली हमले को लेकर बयान जारी किया। यह हमला शहीद अल-अक्सा अस्पताल के पास हुआ, जहां कई फिलिस्तीनी शरणार्थियों ने पनाह ली थी। हमले के दौरान दर्जनों तंबुओं में आग लग गई और कई निर्दोष लोग शहीद और घायल हो गए। अल-जज़ीरा नेटवर्क के सवालों के जवाब में, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने “ग़ाज़ा में जिंदा जलते हुए नागरिकों” की तस्वीरों पर चिंता और दुख व्यक्त किया, लेकिन यह बयान केवल एक औपचारिकता साबित हुआ।

परिषद ने दावा किया, “इज़रायल को नागरिक हताहतों को रोकने के लिए और अधिक कदम उठाने चाहिए।” हालांकि, इस बयान में इज़रायल की असल ज़िम्मेदारी पर जोर देने से परहेज़ किया गया और इसे केवल एक सामान्य घटना के रूप में पेश किया गया, जिसमें यह संकेत दिया गया कि इज़रायल ने गलती से हमला किया है।

इज़रायली हमले का असली चेहरा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह हमला इज़रायली सेना द्वारा जानबूझकर किया गया, जिसमें फिलिस्तीनी शरणार्थियों को निशाना बनाया गया। ग़ाज़ा के शहीद अल-अक्सा अस्पताल के पास बने तंबुओं में आग लगा दी गई, जिसमें दर्जनों लोग जलकर मर गए। इज़रायल सेना की यह योजना बर्बरता की हद तक पहुँच गई है, जहां वह शरणार्थियों और अस्पतालों को निशाना बनाकर पूरे फिलिस्तीन को विनाश के कगार पर ले जाने पर आमादा है।

अमेरिका की पक्षपाती भूमिका
अमेरिका ने फिर से इज़रायली शासन का समर्थन करते हुए हमास पर आरोप मढ़ा और दावा किया कि “हमास नागरिकों का इस्तेमाल मानव ढाल के रूप में कर रहा था।” इस बयान ने एक बार फिर अमेरिकी नीति की दोहरी मापदंडों को उजागर कर दिया, जो कि इज़रायल के अपराधों को नज़रअंदाज़ करते हुए फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को दोषी ठहराने की कोशिश करता है।

यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने इज़रायली अत्याचारों पर इस प्रकार का रुख अपनाया है। फिलिस्तीन में वर्षों से जारी संघर्ष के दौरान, अमेरिका ने हर बार इज़रायल के पक्ष में बयानबाज़ी करते हुए फिलिस्तीनी जनसंहार पर पर्दा डालने की कोशिश की है। अमेरिका की यह नीति न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि इस्राइल को और भी हिंसक और बर्बर कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी
इस घटना के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिली है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन अब तक केवल बयान जारी करने तक ही सीमित रहे हैं। ऐसे में ज़रूरत है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इज़रायल की इस बर्बरता और इन अत्याचारों के खिलाफ सख्त कदम उठाए और निर्दोष फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियाँ बनाए।

दीर अल-बलह की घटना एक और उदाहरण है कि किस तरह इज़रायल अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाता है, और अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की सहायता से इसे छिपाने की कोशिश करता है। ऐसे में यह जरूरी है कि दुनिया इज़रायल के इस अपराध के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाए और फ़िलिस्तीन के लोगों को न्याय दिलाने में अपनी भूमिका निभाए।

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