ईरान और तालिबान की नज़दीकी का राज़, दुश्मन का दुश्मन दोस्त ?

ईरान और तालिबान की नज़दीकी का राज़, दुश्मन का दुश्मन दोस्त ? अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ईरान बिल्कुल भी चिंतित दिखाई नहीं दे रहा है।

ईरान और तालिबान के बीच अतीत में संबंध बहुत तनावपूर्ण रहे हैं यहां तक कि एक बार ईरान तालिबान पर हमला करने का फैसला कर चुका था।

लेकिन अब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ईरान बिल्कुल भी परेशान नहीं दिख रहा है। अफगानिस्तान और ईरान 921 किलोमीटर का बॉर्डर साझा करते हैं।

इस समय ईरान में 30 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी मौजूद हैं और यह दोनों देशों के बीच तनाव का कारण भी रहा है। लेकिन ईरान इस आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश कर रहा है।

ईरान तालिबान के साथ व्यापार सुरक्षा ऊर्जा और परिवहन समझौते को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है।

वर्तमान में ईरान और अफगानिस्तान के बीच सालाना दो बिलियन अमेरिकी डालर का कारोबार होता है। ईरान अफगानिस्तान का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। अफगानिस्तान को जरूरत का 40 फीसद से अधिक तेल ईरान से मिलता है।

दोनों देशों के बीच रिश्ते सिर्फ कारोबार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान की कई प्रभावशाली हस्तियों ने ईरान में रहकर पढ़ाई की है। इस वक्त भी ईरान के हायर एजुकेशन में 40,000 से अधिक अफ़ग़ानी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।

ईरान में स्थित दो प्रमुख शिया धर्म स्थल मशहदे मुकद्दस और क़ुम में प्रतिवर्ष 1000000 से अधिक अफगानी श्रद्धालु पहुंचते हैं।

बात करें दोनों देशों के बीच विवाद और तनाव की, तो तालिबान शासन में दोनों देशों के बीच विवाद भी बहुत गहरा रहा है।

1998 में तालिबान ने मजारे शरीफ शहर में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास को घेर कर 9 राजनयिक और एक पत्रकार की हत्या कर दी थी।

तालिबान के इस कृत्य से ईरान में शोक की लहर दौड़ गई थी। ईरान तालिबान के इस कृत्य से इतना नाराज हुआ कि उसने अपनी सेना को अलर्ट कर दिया था और अफगान बॉर्डर पर लगभग 70000 से अधिक सैनिकों को तैनात कर दिया था।

संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव के बाद तालिबान ने मारे गए ईरानी राजनयिकों के शवों को वापस करते हुए 50 ईरानी बंदियों को रिहा कर दिया था जिसके बाद यह युद्ध टल सका।

हाल ही में एप्पल न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान के तत्कालीन सुरक्षा प्रमुख रहे मूसवी ने कहा था कि ईरान युद्ध का निर्णय कर चुका था लेकिन सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह ख़ामेनई ने इस निर्णय को वीटो कर दिया था।

बात हम वर्तमान समय की करें, तो ईरान और तालिबान दोनों ही अमेरिका को अपना दुश्मन मानते हैं। अफगानिस्तान से अमेरिका का निकलना तेहरान के लिए अमेरिकी विरोधी मोर्चे को मजबूत करने का बेहतर अवसर हो सकता है।

जानकार सूत्रों के अनुसार ईरान और तालिबान दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है वाले रास्ते पर चल रहे हैं। ईरान ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने के इरादे जाहिर कर दिए हैं। लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि ईरान तालिबान सरकार को बहुत जल्दी मान्यता देगा।

ईरान रूस और चीन जैसे देशों को देखकर ही कोई कदम उठाएगा। ईरान अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा को लेकर भी बेहद चिंतित है।

ईरान तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखने के साथ ही अन्य विकल्पों पर भी विचार करेगा।
@Maulai G

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