नेतन्याहू के विरुद्ध इज़रायल के इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन, 7.5 लाख लोग सड़कों पर उतरे
तेल अवीव: ग़ाज़ा में 6 बंधकों के शव मिलने के बाद इज़रायल में प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ जनता का आक्रोश तेजी से बढ़ने लगा है। बंधकों की रिहाई के लिए हमास से युद्ध-विराम की मांग करते हुए शनिवार को इज़रायल के विभिन्न शहरों में साढ़े 7 लाख से अधिक लोग सड़कों पर उतर आए। तेल अवीव से प्रकाशित होने वाले अखबार “इज़रायल टाइम्स” ने इसे इज़रायल के इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन करार दिया है।
प्रदर्शन का आयोजन करने वाले समूह ‘प्रो डेमोक्रेसी प्रोटेस्ट मूवमेंट’ के अनुसार, शनिवार शाम को पूरे देश में एक साथ विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें केवल राजधानी तेल अवीव की सड़कों पर 5 लाख प्रदर्शनकारी थे। प्रदर्शन की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरा तेल अवीव थम गया था। यहां प्रदर्शन ‘होस्टेज फैमिली फोरम’ के बैनर तले किया गया। आयोजकों के अनुसार, अन्य शहरों में ढाई लाख से अधिक लोग अपने घरों से निकले।
इज़रायल पर हमास के हमले को 11 महीने हो चुके हैं। हमले के समय हमास के लड़ाकों ने 240 इज़रायली नागरिकों को बंधक बना लिया था। इनमें से 105 बंधकों को 240 फिलिस्तीनी कैदियों के बदले हमास ने रिहा किया है, जबकि 100 से अधिक अभी भी उसकी कैद में हैं। आशंका है कि एक तिहाई बंधक इज़रायली हमलों में मारे जा चुके हैं। ग़ाज़ा में 6 बंधकों के शव मिलने के बाद इज़रायली जनता और खास तौर पर बंधकों के परिजनों की बेचैनी बढ़ गई है। उन्हें आशंका है कि अगर तेल अवीव युद्ध-विराम पर सहमत नहीं हुआ और ग़ाज़ा पर हमले नहीं रोके गए, तो बाकी बंधकों की भी जान चली जाएगी।
बंधकों की रिहाई के नाम पर शुरू की गई जंग में 7 अक्टूबर से अब तक नेतन्याहू सरकार 40,972 फिलिस्तीनियों को शहीद और 94,761 को घायल कर चुकी है। ‘टाइम्स ऑफ इज़रायल’ ने अपनी रिपोर्ट में तेल अवीव में 5 लाख लोगों के विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हुए लिखा है कि “अगर यह संख्या सही है, तो यह इज़रायल के इतिहास का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है।” इज़रायली पुलिस ने तेल अवीव में 5 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की पुष्टि की है, हालांकि उसने प्रदर्शनकारियों की संख्या पर चुप्पी साध रखी है।
तेल अवीव की सड़कों पर लोगों की भीड़
हालांकि ड्रोन से ली गई तस्वीरों और वीडियो में तेल अवीव की सड़कों पर चारों तरफ़ केवल लोगों की भीड़ नजर आ रही है। तेल अवीव के साथ ही यरुशलम, हाइफ़ा, रेशोन, लिज़िओन, बेयर शेवा, नेतन्या और अन्य शहरों में भी बड़े प्रदर्शन हुए। दूसरी ओर, प्रदर्शनों के बावजूद नेतन्याहू अपने रुख पर कायम हैं कि बंधकों की रिहाई हमास पर सैन्य दबाव और हमलों के परिणामस्वरूप ही हो सकती है। उनका यह रुख 11 महीने की लंबी बमबारी और ग़ाज़ा को खंडहर में तब्दील कर देने के बाद भी कायम है, जबकि वे दो-तीन बंधकों से ज्यादा को रिहा नहीं करवा पाए हैं। जो बंधक रिहा हुए हैं, वह हमास के साथ कैदियों के आदान-प्रदान के बदले ही हुए हैं।
पिछले सप्ताह की तुलना में प्रदर्शनकारियों की संख्या में 2 लाख का इज़ाफा
अल-जज़ीरा के संवाददाता हमज़ा सलेहौत के अनुसार “पिछले सप्ताह की तुलना में प्रदर्शनकारियों की संख्या में 2 लाख का इज़ाफा हुआ है, लेकिन नेतन्याहू का मानना है कि बाकी बंधकों को घर वापस लाने का तरीका केवल सैन्य दबाव है। रिहाई के लिए किसी समझौते की संभावना अभी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।” दूसरी ओर, प्रदर्शनकारी नेतन्याहू के इस रुख को उनके राजनीतिक स्वार्थ का नतीजा बताते हैं। प्रदर्शनकारियों की संख्या में वृद्धि के संदर्भ में बंधक गाजी मोसिस के भतीजे अरफ़ात मशिकावा का कहना है कि “अब तक जो लोग बाहर नहीं आ रहे थे, जो आम तौर पर प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं होते, वे भी दुखी हैं और समझते हैं कि उनकी आवाज भी इस चीख का हिस्सा होनी चाहिए कि, बंधकों को समझौते के बदले रिहा करवाओ, उनकी जान को खतरे में मत डालो।”
शाय डिकमैन, जिनके चचेरे भाई ग़ाज़ा में मारे गए, ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि “मेरा भाई जुलाई में पेश किए गए समझौते के तहत रिहा होने के करीब था, लेकिन नेतन्याहू ने इनकार कर दिया।” डिकमैन ने कहा कि “पिछले गुरुवार को कार्मेल ज़िंदा था, एक लड़ाके ने जब सैन्य दबाव महसूस किया तो उसने गोली चला दी।” उन्होंने कहा कि “सैन्य दबाव मौत का कारण बन रहा है।” प्रदर्शनकारियों ने तेल अवीव और अन्य शहरों में सड़कों पर आग जलाकर और नेतन्याहू के खिलाफ नारे लगाकर अपना गुस्सा जाहिर किया। यह विरोध प्रदर्शन, जिसने पिछले शनिवार (31 अगस्त) से जोर पकड़ लिया है, और इसके लगातार जारी रहने की संभावना है।