नेतन्याहू कैबिनेट में नए संकट के संकेत

नेतन्याहू कैबिनेट में नए संकट के संकेत

इज़रायल की राजनीति और सैन्य नीति में तनाव एक बार फिर बढ़ता दिख रहा है। इजरायल कात्ज़, जो हाल ही में इज़रायल के नए रक्षामंत्री बने हैं, ने घोषणा की है कि 7,000 हरेदी युवाओं को सेना में भर्ती के लिए कॉल-अप नोटिस भेजे जाएंगे। यह फैसला पूर्व रक्षामंत्री योआव गैलांट के आदेशों पर आधारित है। यह नोटिस रविवार से चरणबद्ध तरीके से भेजे जाएंगे।

हरेदी समुदाय और सेना में शामिल होने का मुद्दा
हरेदी यहूदी समुदाय पर लंबे समय से सेना में शामिल होने का दबाव रहा है, लेकिन धार्मिक और सामाजिक कारणों से यह समुदाय हमेशा सेना में शामिल होने से बचता रहा है। इज़रायली सेना में पहले से ही जवानों की भारी कमी है, और रिजर्व सैनिक भी विभिन्न बहानों के कारण युद्ध से बचने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में हरेदी समुदाय को सेना में शामिल करना एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।

नेतन्याहू और हरेदी पार्टियों के बीच संवाद
इज़रायली मीडिया चैनल “कान” के अनुसार, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हरेदी पार्टियों को संदेश भेजा है कि सुप्रीम कोर्ट उन भर्ती आदेशों को रोक देगा, जो योआव गैलांट ने दिए थे और जो अब इजरायल कात्ज़ द्वारा लागू किए जा रहे हैं। यह संदेश नेतन्याहू ने गैलांट को बर्खास्त करने और कात्ज़ को रक्षा मंत्रालय का प्रभार देने से पहले भेजा था। हालांकि, नेतन्याहू के कार्यालय ने इस बात का खंडन किया है। उनका कहना है कि ऐसा कोई संदेश नहीं भेजा गया और यह निर्णय पूरी तरह इजरायल कात्ज़ के अधिकार में है।

हरेदी पार्टी का कड़ा रुख
हरेदी पार्टियों की ओर से इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया आई है। हरेदी पार्टी के एक अधिकारी ने i24NEWS को दिए इंटरव्यू में कहा, “हमें पता था कि इजरायल कात्ज़ रक्षामंत्री के तौर पर इतिहास बनाना चाहते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इतिहास उन्हें केवल इज़रायल के सबसे कम समय तक रहने वाले रक्षामंत्री के रूप में याद करेगा।”

सेना में संकट के गंभीर संकेत
इज़रायली सेना में जवानों की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है। हरेदी समुदाय ने अब तक सेना में शामिल होने से इनकार किया है, और रिजर्व सैनिक भी सेना में अपनी सेवा देने से बच रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह स्थिति इज़रायल के सुरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकती है।

यह विवाद न केवल नेतन्याहू की कैबिनेट में संकट पैदा कर सकता है, बल्कि इज़रायल की राजनीति और सुरक्षा नीति पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। हरेदी समुदाय की नाराजगी और सेना की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना नेतन्याहू के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। अब देखना यह होगा कि नेतन्याहू और उनकी कैबिनेट इस संकट को किस तरह संभालती है और क्या यह विवाद उनकी सरकार को लंबे समय तक प्रभावित करेगा।

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