ईरान पर इज़रायल के हमले में कई शीर्ष, ईरानी अधिकारियों की शहादत
आज शुक्रवार की सुबह, जब दुनिया सो रही थी, इज़रायल ने सैकड़ों मिसाइलों से ईरान पर पांच चरणों में ऐसा हमला किया, जिसे केवल “सैन्य कार्रवाई” कह कर नहीं टाला जा सकता। यह हमला एक संगठित ‘युद्ध’ था—जिसका लक्ष्य सिर्फ ईरान के परमाणु ठिकाने नहीं, बल्कि उसके नेतृत्व, वैज्ञानिक क्षमता और सैन्य रीढ़ को तोड़ना था।
इज़रायली अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने सिर्फ सैन्य और परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है। रिहायशी इलाकों में धमाके हुए, सरकारी आवासों पर मिसाइलें दागी गईं और वैज्ञानिक परिसरों पर जानबूझकर हमला किया गया। इज़रायली हमले में जिन प्रमुख चेहरों को शहीद किया गया, वे सिर्फ ईरान के लिए नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता के स्तंभ थे:
1- अली शमखानी, सर्वोच्च नेता के सलाहकार
2- मेजर जनरल मोहम्मद बाक़री, चीफ़ ऑफ स्टाफ
3- मेजर जनरल हुसैन सलामी, IRGC प्रमुख
4- मेजर जनरल ग़ुलामअली राशिद, ख़ातम-अल-अनबिया हेडक्वार्टर कमांडर
5- प्रो. मोहम्मद मेहदी तेहरानची, वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक
इनकी हत्या सिर्फ सैन्य हमला नहीं, बल्कि राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व की सुनियोजित हत्या है। इज़रायल ने यह साबित कर दिया है कि जब वह हार की दहलीज पर होता है, तो वह अंतरराष्ट्रीय नियमों, मानवता और सीमाओं की कोई परवाह नहीं करता। यह हमला बताता है कि इज़रायल अब सैन्य ज़मीन पर नहीं लड़ सकता, इसलिए वह अपने दुश्मनों के दिमाग, रणनीति और नेतृत्व पर वार कर रहा है। यह एक खुला युद्ध है, जिसमें शब्द नहीं, मिसाइलें बोल रही हैं।
अब सवाल यह है:
क्या संयुक्त राष्ट्र अब भी चुप रहेगा?
क्या तथाकथित लोकतांत्रिक पश्चिम इस युद्ध को “रक्षा” का नाम देगा?
और क्या मुस्लिम जगत अब भी केवल ‘शोक संदेश’ तक सीमित रहेगा?
यह समय है जब इज़रायल को साफ संदेश मिलना चाहिए कि, अगर आप नेतृत्व पर हमला करेंगे, तो जवाब केवल प्रतिक्रिया नहीं, एक निर्णायक मोर्चा होगा। यह हमला इज़रायल के डर, उसकी असुरक्षा और उसके पतनशील मानसिकता को दर्शाता है। जब एक राष्ट्र बौखलाकर बुद्धिजीवियों और सैन्य नेतृत्व पर हमला करता है, तो यह साफ संकेत है कि वह अब केवल जमीनी लड़ाई नहीं, बल्कि सभ्यताओं और संप्रभुता का अंत चाहता है।


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