सऊदी अरब के नियंत्रण वाले यमनी सैन्य ठिकाने में बग़ावत
यमन की सरज़मीन पर एक बार फिर वो आवाज़ गूंजी है जो ग़ाज़ा के जख़्मों की गूंज है। इस बार आवाज़ आई है अल-बुक़ा से, जहाँ यमनी सैनिकों ने सऊदी अरब के थोपे हुए कमांडर के ख़िलाफ़ बगावत कर दी है। यमन के अल-बुक़ा इलाके में जो बग़ावत देखने को मिली है, वो सिर्फ एक सैन्य विद्रोह नहीं, बल्कि एक आवाज़ है, उस अरब जमीं की, जो ग़ाज़ा के साथ खड़ी है और सऊदी जैसे कथित “इस्लामी रहनुमाओं” की हक़ीक़त को बेनक़ाब कर रही है।
‘अरबी21’ की रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब ने एक बार फिर यमन के मामलों में दख़ल देते हुए ‘रदाद अल-हाशिमी’ नाम के एक सलफ़ी कट्टरपंथी को यमन के एक बेहद अहम सैन्य ज़ोन — अल-बुक़ा — का कमांडर नियुक्त कर दिया। लेकिन यमनी सैनिकों ने इस तानाशाही फ़ैसले को मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने खुलकर कहा कि यह शख़्स नाकाबिल, बदनाम और रियाज़ का मोहरा है।
इस विरोध ने एक बग़ावत की शक्ल ले ली। दर्जनों सैनिक हथियारों और सैन्य वाहनों के साथ कमांड पोस्ट की ओर बढ़े, ‘हाशिमी हटाओ’ के नारे लगाए, और अपने पुराने कमांडर ‘अब्दुर्रहमान अल-वाअदी’ की वापसी की मांग की। ये वही सैनिक हैं जो सऊदी के चंगुल में रहकर भी आज़ादी की तलब रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ग़ाज़ा में लोग इज़रायल के टैंक के साये में भी हिम्मत से खड़े हैं।
सऊदी अरब एक तरफ ग़ाज़ा हमलों पर चुपचाप खड़ा तमाशा देख रहा है, तो दूसरी ओर यमन में अपने पसंदीदा कट्टरपंथियों को थोपकर एक पूरे देश की स्वतंत्रता को निगलना चाहता है। ग़ाज़ा में वह इज़रायल का रणनीतिक साझीदार है, और यमन में वह अमेरिका की ‘वॉर बाय प्रॉक्सी’ का हिस्सा।
ग़ाज़ा के बच्चे भूख से तड़पते हैं, और सऊदी अरब, अरबों डॉलर के हथियार सौदों में मस्त है। यमन के सैनिक जब अपने असली कमांडर के लिए आवाज़ उठाते हैं, तो सऊदी उन्हें ‘बाग़ी’ करार देता है। मगर ये हकीकत है कि ग़ाज़ा हो या यमन, लड़ाई सिर्फ ज़मीन की नहीं, अस्मिता की है।
सऊदी अरब आज इस्लामी दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी बन चुका है, जो इस्लाम के नाम पर हुकूमत, जातिवाद और ज़ुल्म को फैलाता है। यमनी सैनिकों की ये बग़ावत सिर्फ एक नियुक्ति के खिलाफ नहीं है, ये एक पैग़ाम है कि, हम ग़ाज़ा के साथ हैं, हम इज़्ज़त के साथ हैं, हम सऊदी की ग़ुलामी नहीं करेंगे।


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