ईरान-सऊदी अरब समझौते के बीच कोई निजी स्वार्थ नहीं: चीन

ईरान-सऊदी अरब समझौते के बीच कोई निजी स्वार्थ नहीं: चीन

सात साल बाद हुए ईरान-सऊदी अरब के बीच समझौते का जहाँ बहुत से देशों ने स्वागत किया है वहीँ इस समझौते से इस्राईल के चेहरे पर चिंता की लकीर उभर आयी है और उसने इस समझौते को अपने देश के लिए ख़तरनाक बताया है। इस्राईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को सामान्य करना चाहते हैं। लेकिन, सऊदी अरब ने ईरान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है, जो इस्राईल का पुराना प्रतिद्वंद्वी है।

ईरान-सऊदी अरब के बीच समझौते के लिए चीन को मध्यस्थ बताया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि दोनों देश को नज़दीक लाने और दोबारा दूतावास स्थापित करने के लिए चीन ने राज़ी किया है। मालूम हो कि ईरान-सऊदी अरब के बीच हुई वार्ता में दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित करने पर सहमति जताई थी। दोनों देशों द्वारा सात साल बाद अपने दूतावास दोबारा खोलने के फैसले को चीन की अहम कूटनीतिक जीत मानी जा रही है, क्योंकि खाड़ी देशों का मानना है कि इस क्षेत्र में अमेरिका अपनी उपस्थिति कम कर रहा है।

इस बीच चीन ने ईरान और सऊदी अरब की बातचीत की मेजबानी करने के पीछे कोई छिपी हुई मंशा होने से शनिवार को इन्कार किया और कहा कि वह पश्चिम एशिया में ‘किसी खालीपन’ को भरने की कोशिश नहीं कर रहा है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि चीन का कोई स्वार्थ नहीं है और वह इलाके में भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा का विरोध करता है।

ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल करने के समझौते का सीरिया ने स्वागत किया है। कहा है कि इससे क्षेत्र में तनाव कम होगा। सीरिया के विदेश मंत्री ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे क्षेत्र में स्थिरता बढ़ेगी। इससे दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा और आपसी हितों पर सकारात्मक असर पड़ेगा। बताते चलें कि सीरिया में ईरान राष्ट्रपति बशर असद का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब उनसे लड़ रहे विद्रोहियों के साथ है।

ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल करने के समझौते का सीरिया ने स्वागत किया है। कहा है कि इससे क्षेत्र में तनाव कम होगा। सीरिया के विदेश मंत्री ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे क्षेत्र में स्थिरता बढ़ेगी। इससे दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा और आपसी हितों पर सकारात्मक असर पड़ेगा। बताते चलें कि सीरिया में ईरान राष्ट्रपति बशर असद का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब उनसे लड़ रहे विद्रोहियों के साथ है।

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