नेतन्याहू की सीरिया में दिलचस्पी नहीं, फिर भी 500 स्थानों पर बमबारी
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नीतियाँ हमेशा से ही वैश्विक राजनीति में चर्चा का विषय रही हैं, लेकिन हाल ही में उनका दोहरा रवैया और उनकी बमबारी की धमकियों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गहरी चिंता में डाल दिया है। सीरिया संघर्ष में वह अपना रवैया बेमन और निष्क्रिय दिखातेहैं, लेकिन दूसरी ओर, नेतन्याहू प्रशासन पिछले एक हफ्ते में वहां 500 स्थानों पर बमबारी करता है। यह दोहरी नीति न केवल मध्य पूर्व की राजनीति में उथल-पुथल मचा सकती है, बल्कि पूरे विश्व की स्थिरता को भी खतरे में डाल सकती है।
सीरिया में चल रहा संघर्ष एक मानवतावादी संकट बन चुका है। इस संघर्ष में न केवल सीरिया, बल्कि आसपास के देशों ने भी अपनी नीतियाँ बदली हैं। नेतन्याहू का कहना है कि उनका देश इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होगा, क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य अपनी सीमाओं की रक्षा करना है। लेकिन, इज़रायल ने सीरिया में हवाई हमले करके अपनी विस्तारवादी और अतिक्रमणकारी नीति को और तेज कर दिया है। इज़रायल का यह दुराग्रह कि वह सीरिया के आंतरिक संघर्ष में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक उसकी सुरक्षा को सीधा खतरा न हो, थोड़ा सा खोखला प्रतीत होता है। यह रवैया इज़रायल की रणनीती को समझने के लिए काफी है, लेकिन सीरिया में हो रही व्यापक तबाही और इसके मानवीय संकट के कारण उसे अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करन पड़ रहा है।
500 स्थानों पर बमबारी की धमकी
नेतन्याहू की हालिया बमबारी की धमकी, जिसमें उन्होंने कहा कि इज़रायल 500 स्थानों पर हमला करेगा, एक गंभीर संदेश देती है। उनका यह बयान इज़रायल की आक्रामक सैन्य नीति को और स्पष्ट करता है। नेतन्याहू ने यह धमकी दी है कि यदि उनकी सुरक्षा को कोई खतरा हुआ, तो वह तुरंत उस स्थान पर हमले करेंगे। उनका मानना है कि इज़रायल को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का पूरा अधिकार है, और इस संदर्भ में वह किसी भी हद तक जा सकता है, फिर चाहे किसी भी देश या किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाए।
प्रश्न यह उठता है कि नेतन्याहू प्रशासन या इज़रायली सेना आत्म रक्षा के नाम पर और कितना अत्याचार करेगी? और कितने घरों और इलाक़ों को शमशान घाट बनाएगी? क्या सुरक्षा का अधिकार केवल इज़रायल को है? क्या इस दुनिया में केवल नेतन्याहू और इज़रायल को ही जीने का अधिकार है? आत्मरक्षा के नाम पर उनकी बर्बरता कब ख़त्म होगी? क्या नेतन्याहू ग़ाज़ा की तरह पूरे सीरिया को मलबे का ढेर बना देना चाहते हैं? असद सरकार के समय यूरोपीय देशों का कहना था कि, वहां के नागरिकों पर असद सरकार अत्याचार कर रही है, लेकिन अब जब असद सरकार का पतन हो चुका है तो नेतन्याहू प्रशासन किस पर हमला कर रहा है?
अगर आत्मसुरक्षा इज़रायल का अधिकार है तो फिर यह अधिकार दूसरों को क्यों नहीं दिया जाता?? यह अधिकार ग़ाज़ा पट्टी के निवासियों को क्यों नहीं दिया जाता?? यह अधिकार उन फिलिस्तीनियों को क्यों नहीं दिया जाता जो अपनी ही ज़मीन पर क़ैदी बने इज़रायली अत्याचारों का सामना कर रहे हैं ?? इज़रायल की इस नीति के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए यह सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या इज़रायल अपनी नीतियों में सैन्य हस्तक्षेप की सीमा लांघ रहा है?? और क्या इसका प्रभाव क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर पड़ सकता है?? क्या इज़रायली अत्याचारों को कोई नहीं रोक सकता? अगर इज़रायल को कोई रोक नहीं सकता तो फिर, संयुक्त राष्ट्र या सुरक्षा परिषद का क्या औचित्य रह जाता है??
इज़रायल की नीतियों का जटिल समीकरण
नेतन्याहू की दोहरी नीति स्पष्ट रूप से इज़रायल की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में मिली-जुली स्थिति को दर्शाती है। जब वह सीरिया के संघर्ष में सीधे हस्तक्षेप नहीं करने की बात करते हैं, तो वह यह तर्क देते हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य अपनी सीमाओं की रक्षा करना है। हालांकि, जब बात उनके देश की सुरक्षा की आती है, तो वह किसी भी संभावित खतरे को खत्म करने के लिए 500 स्थानों पर बमबारी करने की धमकी देते हैं। यह इज़रायल की नीति के दोहरे मापदंड को उजागर करता है, जहां वह अपनी आंतरिक समस्याओं और वैश्विक आलोचनाओं से बचने के लिए सीरिया के संघर्ष से खुद को दूर रखने की कोशिश करता है, लेकिन जब उसे अपनी सुरक्षा का खतरा महसूस होता है, तो वह बगैर किसी संकोच के आक्रामक कदम उठाने को तैयार रहता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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