इस्राईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की संयुक्त अरब अमीरात की बहुप्रतीक्षित यात्रा एक बार फिर अधूरी रह गयी । कहा जा रहा है कि नेतन्याहू के सपनों पर इस बार जॉर्डन ने पानी फेर दिया है
कहने को को तो इस यात्रा के टालने का मुख्य कारण जॉर्डन है जिसने अपनी वायुसीमा से इस्राईल के विमान को गुजरने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। जॉर्डन ने यह क़दम इस्राईल की उस हरकत के जवाब में उठाया है जिसमे इस्राईल ने जॉर्डन के प्रिन्स अल हुसैन बिन अब्दुलाह को मस्जिदे अक़्सा में प्रवेश करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था।
लेकिन जानकार हल्कों में कहा जा रहा है कि यह तो सिर्फ एक बहाना है वास्तविकता यह है कि इस्राईल और जॉर्डन में इस से भी कहीं अधिक गहरे मतभेद हैं जिसका एक कारण यह है कि इस्राईल क़ुद्स और मस्जिदे अक़्सा जैसे फिलिस्तीन के पवित्र स्थलों के प्रबंधन में जॉर्डन के राज परिवार का प्रभाव धीरे धीरे खत्म करना चाह रहा है। और सेंचुरी डील के अनुरूप पहले इस का प्रबंधन सऊदी अरब और फिर खुद अपने पास रहे।
दूसरा कारण ज़ायोनी युद्ध मंत्री और नेतन्याहू के कट्टर प्रतिद्वंदी बैनी गांट्ज़ की जॉर्डन यात्रा और किंग अब्दुल्लाह से मुलाक़ात को भी माना जा रहा है। नेतन्याहू के कट्टर विरोधियों की जॉर्डन यात्रा और जॉर्डन का नेतन्याहू को सहयोग न करना ऐसे कारण हैं जिसने नेतन्याहू को अत्यधिक क्रोधित कर दिया है।
क़ुद्स को ट्रम्प द्वारा इस्राईल की राजधानी घोषित करने और वेस्ट बैंक समेत जॉर्डन वैली को इस्राईल में शामिल करने की नेतन्याहू की योजना के बाद इस्राईल और जॉर्डन के संबंधों में कटुता आ गयी थी।
वहीँ कहा जा रहा है कि खुद अमीरात और अमेरिका इस सफर को रोकने के पीछे भी हो सकते हैं ताकि नेतन्याहू इस यात्रा का उपयोग कर फिर सत्ता में न आ सके। ऐसा लगता है कि अमेरिका और अमीरात इस्राईल में नेतन्याहू के अलावा सत्ता में आने वाले किसी अन्य व्यक्ति के सतह काम करने के इच्छुक हैं। अतः संभव है कि उन्होंने ही जॉर्डन को इस काम के लिए तैयार किया हो कि ज़ायोनी विमान को अपने क्षेत्र से न गुज़रने दे।